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मुइवि एकल्लिय
8. तह वि
ण
सो
9.
रिणयत्तु
भयभीयउ
मुरगइ
सयलु
इणु
कीयउ
जाय
रयणि
ते
सोह-मयाउर
पल्लट्टिवि
गय
*
ते
पुण णियघर
10 तासु जरणि
महदुक्खे
तत्ती
हुय
निरास
खरिण
पगलियरणेती
11. हा-हा किह
सुब-दंसणु
होइ
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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( मुअ + इवि ) संकृ
[ ( एकल्ल) + (इय) ] ( एकल्ला) 1 / 1 वि
इय = अव्यय
( जा जायजाया) भूकृ 1 / 1
( रयणी) स्त्री 1/1 (त) 1/2 सवि
[ ( सीह ) + (भय) + (आउर ) ] [ (सीह ) - (भय) - ( आउर ) 1 / 2 वि ]
(पल्लट्ट + इवि ) संकृ
अव्यय
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
(णियत्त) भूकृ 1 / 1 अनि
[ (भय) - ( मीयअ ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक] भयभीत
( मुरण) व 3 / 1 सक
( पवंच) 2 / 1
(सयल) 2 / 1 वि
(इम) 2 / 1 सवि
(कीयअ ) भूक 2 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक
(ग) भूकृ 1/2 अनि (त) 1/2 सवि
अव्यय
[ ( पिय) वि- (घर) 2 / 1 ]
(त) 6/1 स
( जणणी) 1 / 1
[ (मह) वि - ( दुक्ख ) 3 / 1 ]
(तत्त - (स्त्री) तत्ती) भूकृ 1 / 1 अनि
(हुहुहुया) भूकृ 1 / 1
->
( णिरास (स्त्री) णिरासा) 1 / 1 वि (खण) 7/1
[[ ( पगलिय) भूक - (त्त (स्त्री) शेती)
1. 1] वि]
अव्यय
अव्यय
[ ( सुव) - ( दंसण) 1 / 1]
( हो ) भवि 3 / 1 अक
छोड़कर
केली,
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यहां
तो भी
नहीं
वह
लौटा
समझता है (समझा )
छल
सबको
इस ( को ) किया हुआ
हुई
रात्रि
ये
सिंह के भय से पीड़ित
पलटकर
गये
ये
फिर
अपने घर को
उसको
माता
महादुःख के कारण
दु:खी
हुई
निराश
क्षण में
बहते हुए वाली
हाय-हाय
कैसे
सुत का दर्शन
होगा
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