________________
दुट्ठ विहिहि पुणु-पुणु
(दुट्ठ)6/11 वि (विहि)6/11 अव्यय (ता) 1/1 सवि (कोस) व 3/I सक
दुष्ट किस्मत को बार-बार
सा
वह
कोसइ
कोसती है (कोसने लगी)
12. भाय-माय
हा किम जीवसमि सुबाहु सुवस्तु किम पेच्छेसमि
(भाअ) 8/1 अव्यय अव्यय (जीव) भवि 1/1 अक (सुबाहु) 2/1 वि (सुवत्त) 2/1 वि अव्यय (पेच्छ) भवि 1/1 सक
हे भाई, हे भाई हाय कैस जोदूंगी सुन्दर मुजावाले सुन्दर मुखवाले को कैसे देखेंगी
हाय-हाय क्यों
13. हा-हा
कि बंधव रिचितउ
मह
अव्यय अव्यय (बंधव) 8/1 (णिचिंतअ) 1/1 वि (अम्ह) 6/1 स (सुअ) 1/1 [(विसम)+ (अवत्थहिँ)] [(विसम) वि-(अवत्था) 7/1] (पत्तअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वाथिक
निश्चिन्त मेरा पुत्र कठिन (विषम) अवस्था में
विसमावस्यहि
पत्तउ
पड़ा हुआ
14. हउँ
सरणि विएसे पत्ती करहि गंपि3
(अम्ह) 1/1 स (तुम्ह) 6/1 स (सरण) 7/1 (विएस) 7/1 (पत्त→(स्त्री) पत्ती) भूकृ 1/1 अनि (कर) विधि 2/1 सक (गम+एप्पि) संकृ (अम्ह) 6/1 स
तुम्हारी शरण में विदेश में पड़ी हुई करो जाकर मेरे लिए
1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या.3-134)। __यष्ठी एकवचन में 'हिँ' प्रत्यय भी होता है (श्रीवास्तव, पृष्ठ 151)।
गम के साथ संबन्धक कृदन्त के प्रत्यय 'एप्पिणु' और 'एप्पि' जोड़ने पर 'ए' का विकल्प से लोप हो जाता है (गम→गमेप्पि→गप्पि→गंपि) (हेम प्राकृत व्याकरण 4-442)।
150
]
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org