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मंतिएं हणिउ
(मंति) 3/1 (हण ) भूकृ 1/1
मन्त्री के द्वारा मार दिया गया
2.18
1.
तं वयणु सुरणेविणु सरलबाह संतुट्ठउ मंतिहे धरणिणाहु
(त) 2/1 सवि (वयण) 2/1 (सुण+एविणु) संकृ (सरलबाहु) 1/1 (संतुटुअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वाथिक (मंति) 5/1 [(धरणि)-(णाह) 1/1]
उस (को) बात को सुनकर सरलबाहु प्रसन्न हुमा, सन्तुष्ट हुमा मन्त्री से पृथ्वी का नाथ
2.
तिहिं फलहि
मज्ने
एक्कहो फलासु गिरहरियत रिणु
(ति) 7/2 वि
तीन (में से) (फल) 7/2
फलों में से अव्यय (एक्क) 6/1 वि
एक (का) (फल) 6/1
फल का (णिरहर-णिरहरियअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक चुका दिया गया (रिण) 1/1
ऋण (अम्ह) 3/1 स
मेरे द्वारा (मइवर) 6/1
मन्त्रीवर के
मई
मइवरासु
3.
प्रवराह दोणि
अन्य (को) दो को आज
अज्ज
खमीसु
(अवर)2 6/2 (दो) 2/2 वि अव्यय अव्यय [(खम + ईसु)] खम (खम) विधि 2/1 सक ईसु (ईस) 8/1 (खण) 7/1 (ह→हय→हयअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक (पसण्णअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक [(धरणि)-(ईस) 1/1]
क्षमा कीजिए, हे नाथ क्षण भर में
हुश्रा
खणि हुयउ पसण्णउ धररिणईसु
प्रसन्न
पृथ्वी का मुखिया
4. परियाणिवि
मंतिएँ→मंतिई
(परियाण+इवि) संकृ (मंति) 3/1
नानकर मन्त्री के द्वारा
1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ. 152। 2. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-134)।
144 ]
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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