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________________ पयडु करेहि एह 7. एतहिं लहंते 8 सुउ णिवेण देवाविज fiss रे तेरण जो triline राय हो द कहइ को वि दविण इणि लहइ सो वि 9. ता केणfa धिट्ठे तुरियए राहो अगई भणिउ उवलक्खि तुह सुउ देव मइँ सो गवलइँ अपभ्रंश काव्य सौरभ ] Jain Education International ( पयड ) 2 / 1 (कर) विधि 2 / 1 सक (ए) 2/1 सवि (fefe") 1/1 (रायर) 7/1 (त) 3 / 1 स अव्यय ( अलह - अलहंत) वकृ 3 / 1 (सुअ ) 2 / 1 (fora) 3/1 (देव + आव देवाव देवाविअ ) प्रे. भूकृ 1 / 1 प्रज्ञा करवायी गई ढोल (ज) 1/1 सवि ( राय ) 6/1 ( णंदण ) 2 / 1 ( कह ) व 3 / 1 सक (*) 1/1 fa अव्यय (दविणअ) 3 / 1 'अ' स्वार्थिक ( मेइणी) 2 / 1 (लह) व 3/1 सक (त) 1 / 1 सवि अव्यय अव्यय (क) 3 / 1 सवि ( धिट्ठ) भूकृ 3 / 1 अनि क्रिविअ ( रारणाह ) 6 / 1 अव्यय (भण ( उवलक्ख ) भूकृ 1 / 1 (तुम्ह) 6 / 1 स (सुअ) 1/1 (देव) 8/1 (अम्ह) 3 / 1 स (त) 1 / 1 सवि (णवलअ ) 3 / 1 'अ' स्वार्थिक भणिअ) भूकृ 1 / 1 प्रकट करना यह For Private & Personal Use Only यहां पर न पाते हुए होने के कारण पुत्र को राजा के द्वारा नगर में उसके द्वारा जो राजा के पुत्र को कहता है (बतायेगा ) कोई भी साथ द्रव्य ( सम्पत्ति ) भूमि को पाता है ( पायेगा) वह तब किसी (के द्वारा ) ढोठ के द्वारा शीघ्रता से राजा के आगे कहा गया देखा गया तुम्हारा पुत्र, सुत हे देव मेरे द्वारा यह नए [ 143 www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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