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मूल्य चले गये मनुष्यों के नयनों के लिए
3 गयमोल्लई
जरणरण्यरगह पियाई तहि वणिणा
प्रिय
[[(गय) भूक अनि -(मोल्ल) 1/2] वि] [(जण)-(णयण) 4/2] (पिय) 1/2 वि अव्यय (वणि) 3/1 (प्राकृत) (ता)4/1 स (समप्प→समप्पिय) भूकृ 1/2
वहाँ वणिक के द्वारा उसके लिए प्रदान किए गए
ताहे
समप्पियाई
4. सरयागमससहरमाणणोहे [(सरय)+ (आगम)+(ससहर)+ (आणणीहे)]शरदऋतु में प्रानेवाले चन्द्रमा
[[(सरय)-(आगम)-(ससहर)- की तरह मुखवाली के लिए (को) (आणण→(स्त्री) आणणी)4/1] वि] अव्यय
फिर कहियउ
(कह→कहिय-→कहियअ) भूक 1/1'अ' स्वार्थिक कहा गया (त) 3/1 स
उस (वरिणक) के द्वारा विलासिणीहे (विलासिणि) 4/1
विलासिनी के लिए (को)
पुणु
तेण
5.
मई मारिउ
शंदणु
(अम्ह) 3/1 स
मेरे द्वारा (मार→मारिअ) भूकृ 1/1
मारा गया (णंदण) 1/1
पुत्र (णरवइ)6/1
राजाका (इअ) 1/1 स (कह→कहिय→कहियअ) भूकृ 1/I 'अ' स्वार्थिक कही गई (सयल) 1/1 वि
सारी ही [[(थिर) वि-(रइ) 4/1] वि]
स्थिर स्नेहवाली के लिए(को)
गरवई हिं! इउ कहियउ सयलु थिररईहि।
यह
6.
तं सुणिवि ताइँ→ताएं पणिउ सणेहु मा कासु वि
(त) 2/I स (सुरण । इवि) संकृ (ता) 3/1 स (पभण→पमणिअ) भूकृ 1/1 (स-णेह) 1/1 न. अव्यय (क) 4/1 स अव्यय
उसको सुनकर उसके द्वारा कहा गया सस्नेह मत किसी के लिए
1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ. 151।
2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ. 144 । 3. नपु. 1/1 के शब्द कभी-कभी क्रिविअ की तरह प्रयुक्त होते हैं ।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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