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महंतउ
जाएग
वणि
I.
णिहियउ
मंतिपयम्मि
तेण
9. अणुराएं
विगिवि
हिँ
बसहिं
दिणयरतेयकलायर
गुणगणरयणह
सील रहि गहिरिमाई 1
णं
सायर
สี
एक्कहिँ
दिरिण
मंतिवरेण
तहो
यहो
द
हरिवि
तेण
2 प्रहरण
वि
दिहिकरासु
गउ
तुरिउ विलासिरिगमंदिरासु 2
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
( महंतअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक
( जाणअ) 3 / 1 'अ' स्वार्थिक
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(afm) 1/1
( रिहियअ ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक
[ ( मंति) - ( पय) 7 / 1 ]
(त) 3 / 1 स
( अणुराअ ) 3 / 1 त्रिविअ (वि) 1/2 वि
अव्यय
(वस ) व 3 / 2 अक
[ ( दिरणयर ) - ( अ ) - ( कलायर ) 1 / 1 ]
[ ( गुण) - ( गण ) - ( रयण) 6 / 2]
[ (सील) - ( णिहि ) 1/11
( गहिरिम) 7/1
अव्यय
( सायर) 1 / 1
अव्यय
( एक्क) 7/1 वि
(far) 7/1
( मंतिवर ) 3 / 1
(त) 6 / 1 सवि
(राय) 6 / 1
(दरण) 2 / 1
( हर + इवि ) संकृ
(त) 3 / 1 स
2.17
( आहरण ) 2/2
( ले + एविणु) संकृ (दिहिकर) 6/1 वि
(गअ ) भूकृ 1 / 1 अनि
अव्यय
[ ( विलासिरिण) - (मन्दिर) 6 / 1]
महान
समझनेवाला होने के कारण afte
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रखा गया
मन्त्री पद पर
उसके द्वारा
स्नेहपूर्वक
दोनों ही
वहां पर
रहते हैं ( रहने लगे)
सूर्य, तेज में, चन्द्रमा
गुणसमूहरूपी रत्नों के शील के निधान गम्भीरता में के समान
सायर
तब
एक
दिन
मन्त्रोवर के द्वारा
उस
राजा के
पुत्र का ( को )
हरण करके उसके द्वारा
1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146
2. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है ( है. प्रा. व्या. 3-134 ) ।
आभूषणों को
लेकर
सुखकारी
गया
शोधता से
विलासिनो के घर करे
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