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नियमम्मि
पारद्धिहे
$1
गउ
एक्कहिँ दिणम्मि
5 जनरहिय हिं अडविि
सो
*
पडिउ
तह
भुक्खएँ विष्णडिउ
6. अमिए
विरिणम्मिय
सुहराई
फलई ताई
7. संतुट्ठ
तहो वरवर हो 2
राउ
घरि
जाइवि
तहो
दिण्णउ
पसाउ
8. उवयाय
140 ]
[(fora) fa-() 7/1] ( पारद्धि) 4/1
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(गअ ) भूकृ 1 / 1 अनि
( एक्क) 7 / 1 कि
( दिण) 7/1
[ (जल) - (रह रहिय) मूक 7 / 1]
( अडवी) 7/1
(त) 1 / 1 सवि
(पड
अव्यय
पडिअ ) भूकू 1 / 1
( तण्हाअ ) 3 / 1 'अ' स्वार्थिक
( भुक्खाअ ) 3 / 1 'अ' स्वार्थिक (त्रिपड विण्णडिअ ) भूक 1 / 1
(зrfer) 3/1
(वि- णिम्म विरिणम्मिय ) भूकृ 1 / 2
( सुयर) 1 / 2 वि
(त) 4 / 1 स
( दिण्णइँ) भुकृ 1 / 2 अनि
(afar) 3/1 (ST.) (फल) 1/2
(त) 1/2 सवि
( संतुट्ठअ ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वाधिक
(त) 6 / 1 सवि
(aforaz) 6/1
( राअ ) 1 / 1
(घर) 7/1
( जा + इवि ) संकृ
(त) 4 / 1 सवि
( दिण्अ ) भूकृ 1 / 1 अनि
( पसा) 1 / 1
( उवयार ) 1/1
अपने मन में
शिकार के लिए
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गया
ལཱ ཝཱ ;
एक
दिन
जलरहित
जंगल में
वह
फँस गया
वहां पर
प्यास के द्वारा, से
भूख के द्वारा,
व्याकुल किया गया
श्रमृत से बने हुए
सुखकारी
उसके लिए (उसको)
दिए गए
वणिक के द्वारा
फल
वे
1. हे हें, मात्रा के लिए अनुस्वार लगाया जाता है ।
2. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है ( है. प्रा.व्या. 3-134 ) । कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे. प्रा. व्या. 3 - 135 ) ।
3.
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
प्रसन्न हुप्रा
उस पर
श्रेष्ठ दरिक पर
राजा
घर
जाकर
उसके लिए (उसको)
दिया गया
पुरस्कार
उपकार
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