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पाठ-12
करकंडार
सन्धि
-2
2.16
उच्चकहाणी णिसुणि
पुत्त
अव्यय [(उच्च) वि-(कहाणी) 2/1] (रिणसुण) विधि 2/1 सक (पुत्त) 8/1 (संपज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि (संपइ) 1/1 (ज) 3/1 स (विचित्त) 1/1 वि
इसके विपरीत उच्च की कहानी सुन हे पुत्र प्राप्त की जाती है संपत्ति जिससे नाना प्रकार की
संपज्ज संपइ
विचित्त
2. परिकलिवि
संगु
पोचहो हिएण उच्चरण समउ किउ
(परिकल) संकृ (संग) 2/1 (णीच) 6/1 वि (हिअ) 3/1 (उच्च) 3/1 वि अव्यय (किअ) भूक 1/1 अनि (संग) 1/1 (त) 3/1 स
समझकर संगति को नीच (व्यक्ति) को हृदय से उच्च के (साथ) साथ किया गया संग उसके द्वारा
संगु तेण
3. वारणारसिरणयरि
मणोहिरामु अरबिंदु णराहिउ अस्थि
वाराणसी नगर में मन को प्रसन्न करनेवाला अरविंद
(वाणारसी-→वाणारसि)1-(णयर)7/1] (मणोहिराम) 1/1 वि (अरविंद) 1/l (णराहिल) 1/1 (अस) व 3/1 अक अव्यय
है (था) नामक
4. संतोसु
वहंतउ
(संतोस) 2/1 (वह→वहंत→वहंतअ) व
प्रसन्नता को धारण करता हुआ
1/1 'अ' स्वा.
1. समास में ह्रस्व का दीर्घ, दीर्घ का ह्रस्व हो जाता है (हे.प्रा.व्या. 1-4)।
अपभ्रंश काव्य सौरम ]
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