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________________ रायणेहु रिणवरणंदणु अपिउ दिव्वदेह [(राय)-(णेह) 2/1] [(णिव)-(णंदण) 1/1] (अप्प→अप्पिअ) भूकृ 1/1 [[(दिव)-(देह) 1/1] वि] राजा के स्नेह को राजा का पुत्र सौंप दिया गया सुन्दर देहवाला हे (सम्बोधनार्थक) 5. अइ होहि परेसर परममित्तु मई अव्यय (हो) 42/1 अक (णरेसर) 8/1 [(परम) वि-(मित्त) 1/1] (अम्ह) 3/1 स (देव) 8/1 (तुहारअ) 1/1 सवि (कल→कलिअ) भूकृ 1/1 (चित्त) 1/1 (हे) नरेश्वर परममित्र मेरे द्वारा हे देव तुम्हारा पहचान लिया गया चित्त तुहारउ कलिउ चित्तु 6. वणिक के वचन को सुनकर राजा के द्वारा वणिवयण सुविणु परवरेण प्रइपउरु पसाउ पइण्ण [(वणि)-(वयण) 2/1] (सुण एविणु) संक (णरवर) 3/1 (अइपउर) 1/1 वि (पसाअ) 1/1 (पइण्ण) भूक 1/1 अनि पुरस्कार सार्वजनिक रूप से घोषित किया गया उस (के द्वारा) तेण (त)3/1 सवि गुरुआरए संग जणु (गुरुअ) 6/2 वि अच्छों को (संग) 2/1 संगति को (ज) 1/1 सवि जो (जग) 1/1 मनुष्य (वह) व 3/1 सक धारण करता है (हिय)-(इच्छ--→इच्छिय-→इच्छिया) भूकृ 2/1] मन से चाही गई (को) (संपइ)2/1 सम्पत्ति को (त) 1/1 सवि वह (लह) व 3/1 सक प्राप्त करता है हियइच्छिय संप सो लहेइ 8. एह यह उच्चकहारणो कहिय तुझु गुरगसारणि (एता) 1/1 सवि [(उच्च) वि-(कहाणी) 1/1] (कह→कहिय→कहिया) भूकृ 1/1 (तुम्ह) 4/1 स [[(गुण )-(सारणि) 1/1] वि] उच्च (पुरुष) की कहानी कही गयी तेरे लिए गुरणों की परम्परावाली अपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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