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________________ रइज्जइ (रअ) व कर्म 3/1 सक रचा जाता है (रचा जाए) 3.6 1. तं सुणिकरण पणदुरईसो (त) 2/1 स उसको (सुण) संकृ (प्रा.) सुनकर [[(पण?) भुकृ अनि --(रइ+ईस)1/1] वि] (जिसके द्वारा) काम नष्ट कर दिया गया है (वे) [I (मेह)-(णिघोस) 1/1] वि] मेघ के समान स्वरवाले (भण) व 3/1 सक कहता है (बोले) [(जइ)+ (ईस)] [[ (जइ)-(ईस) 1/1]वि विशिष्ट मुनि मेहणियोसु भणेइ जईसो 2. विठ्ठ तए सिविणंतरे (दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि देखा गया (तुम्ह) 3/1 स तुम्हारे द्वारा [(सिविण)+ (अंतरे)] [(सिविण)-(अन्तर) स्वप्न के अन्दर 7/1] (सार) 1/1 वि श्रेष्ठ (पुत्ति) 8/1, ए=अव्यय पुत्री, हे (तुंग) 1/1 वि ऊँचा [(सुदंसण)-(मेर) 1/1] सुन्दर पर्वत सारो पुत्तिए तुंगु सुदंसणमेरो तेण 3. किज्जउ (कि) विधि कर्म 3/1 सक अव्यय सुदंसणु (सुदंसण) 1/1 णामो (णाम) 1/1 सज्जणकामिणिसोत्तहिरामो [(सज्जण)+(कामिरिण)+(सोत्त)+ (अहिरामो)] [(सज्जरण)-(कामिणि)(सोत्त)-(अहिराम) 1/1 वि] किया जाए (रखा जाय) इसलिए सुदर्शन नाम सज्जन और कामिनियों के कानों के लिए मनोहर 4. तब rant तो अव्यय जिरणयासे→जिरण्यासि (जिणयासी) 1/1 जिनदासी णविवि (णव +इवि) संकृ प्रणाम करके जईसं [(जइ) + (ईस)] [(जइ)-(ईस) 2/1 वि] विशिष्ट मुनि को चित्ते (चित्त) 7/1 मन में पहि? (पहिट्ठा→पहिट्ठ) भूक 1/1 अनि आनन्दित हुई गया (गय-→गया) भूक 1/1 अनि गयो सणिवासं (सणिवास) 2/1 स्वनिवास को 5. सोहरणमासे दिरणे [(सोहण) वि-(मास) 7/1] (दिण) 7/1 शुभ-मास में दिन में 136 1 [ अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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