________________
वोलीण
व्यतीत शोध
जाय
तब
ताम जा
(वोलीण) 1/1 वि अव्यय (जा) भूक 1/1 अव्यय अव्यय अव्यय (जिणयासी) 1/1 [(स) वि-(अणुराय) 1/1]
णाम जिणयासि सणुराय
जब नामक जिणदासी अनुराग-सहित
8. बाल
सोमालु देविंदसमदेह लेवि मत्तीए जाएवि जिणगेहु
(वाल) 2/1 (सोमाल) 2/1 वि [[(देविंद)-(सम)-(देह) 2/1] वि] (ले+एवि) संकृ (भत्ति ) 3/1 (जा+एवि) संक [(जिण)-(गेह) 2/1]
बालक को सुकुमार इन्द्र के समान देहवाले लेकर भक्तिपूर्वक जाकर जिनमन्दिर
तोयए पेच्छियउ पुच्छियउ मुणिचन्दु मसमायंगु गामेरा
(ता) 3/1 स
उसके द्वारा (पेच्छ→पेच्छिय→पेच्छियअ) भकृ 1/1 'अ' स्वा. देखे गये (पुच्छ→पुच्छिय→पुच्छियअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वा. पूछे गये (मुणिचन्द) 1/1
मुनिचन्द (मत्तमायंग) 1/1
मतमात्तंग (णाम) 3/1
नाम से (इय) 1/1 सवि
यह (छन्द) 1/1
छंद
छंदु
10. मंदर
जिह थिर
तिह
मेरुपर्वत जिस प्रकार स्थिर उसी प्रकार ज्ञानियों द्वारा कुम्भराशि कही जाती है
(मंदर) 1/1 अव्यय (थिर) 1/1 वि अव्यय (बुहयण) 3/2 (कुंभरासि) 1/1 (पभण) व कर्म 3/1 सक (मम्ह) 6/1 स (तरणअ) 2/1 भव्यय (एरिस) 2/1 वि (मुण+इवि) संकृ (मुणिवर) 8/1 (णाम) 1/1
बुहयरराहिं कुंभरासि पाणिज्जा महु तणन तणउ एरिसु मुणिवि
मेरा
पुत्र सम्बन्धार्थक परसर्ग ऐसा जानकर हे मुनिवर नाम
मुणिवर
णाम
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
। 135
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org