SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेल्लेइ छोड़ता है (छोड़ने लगा) वर्ण (मेल्ल) व 3/1 सक (वरण) 1/1 (सव्व) 1/1 सवि वन सव्यु समस्त 4. मंदु आणंदयारी हुप्रो वाउ वावि। कुवेसु अम्महिउ (मंद) 1/1 वि (आणंदयारी) 1/1 वि (हुअ) भूकृ 1/1 (वाअ) 1/1 (वावी) 7/2 (कूव) 7/2 (अब्भहिन) 1/1 वि (जल) 1/1 (जा→जाअ) भूकृ 1/1 मन्द अानन्दकारी हुश्रा (चला) पवन बावड़ियों में कुत्रों में जलु अत्यधिक जल भरा (उत्पन्न हुआ) जाउ 5. गोसमूहेहि विक्खित्तु थरणदुद्ध एंतजंतेहि पहिएहिं [(गो)-(समूह) 3/2] (विक्खिस) भूकृ 1/1 अनि [(थण)-(दुद्ध) 1/1] [(एंत) वकृ-(जंत) वकृ 3/2] (पहिअ) 3/2 वि (पह) 1/1 (रुद्ध) भूक 1/1 अनि गो-समूहों द्वारा बिखरा गया थरणों से दूध प्राते-जाते हुए (के कारण) पथिकों के कारण मार्ग रुक गया 6. तब तो दिणे छट्टि अव्यय (दिण) 7/1 (छ8) 7/1 वि [(उक्किट्ठ) भूकृ अनि -(कमस) 3/1] (दाव→दाविय) भूकृ 1/l (छट्टिय2→छट्टिया) 1/1 'य' स्वार्थिक उक्किट्ठकमसेरण दाविया छट्टिया दिन पर छठे उत्कृष्टरूप से दिखलाया जन्म के पश्चात किया गया उत्सव झटपट वणिक (वैश्य) के द्वारा ज्झत्ति वइसेण अव्यय (वइस) 3/1 ___ अट्ठ आठ (अट्ठ) 1/2 वि (दो) 1/2 वि (दिवह) 1/1 दिवह दिन 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति में शन्य प्रत्यय का प्रयोग पाया जाता है, (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 147)। 2. छट्ठी→छट्टि (स्त्री)=जन्म के पश्चात किया जानेवाला उत्सव । 134 ] [ अपभ्रंश काव्य सोरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy