SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 13. पसरम्मि cbrare glitt 14. रिसि 15. लइ जाहुँ वरं जिणचेइहर ग्रविलंबझुरणी 16. भयवंती पयति अलं सिforta हलं चलहारमणी चलिया रमणरे 17. भणिप्रो रमणी अपभ्रंश काव्य सौरभ 1 ( पसर) 7/1 (सइ) 1 / 1 वि [ (वर) वि - ( सुद्धमइ ) 1 / 1 वि] ( गय→ गया) भूकृ 1 / 1 अनि अव्यय अव्यय (थिअ) भूकृ 1 / 1 अनि ( कंत ) 1/1 अव्यय Jain Education International (faq-faar) 8/1 [[ ( हंस) - ( गइ ) 8 / 1] वि] (furer) 7/1 रात में ( लक्ख लक्खियलक्खियअ ) भूकृ 1 / 1'अ' स्वा. देखे गये (त) 16 / 1 स उसके द्वारा (अक्ख अक्खिय अक्खियअ ) भूकृ 1 / 1 'अ' स्वा. कहे गये ( पभरण) व 3 / 1 सक ( प ) 1 / 1 अव्यय (जा) व 1/2 सक अव्यय [ ( जिरण) - ( चेइहर ) 2 / 1] {[ ( अविलंब) वि- (झुरिण ) 1 / 2] वि ) [ ( भयवंत) वि - ( मुणि) 1 / 2 ] ( पयड) व 3 / 2 सक अव्यय ( सिविरण ) 6 / 1 ( हल) 2 / 1 [[ (चल) - ( हार ) - ( मणि) 1/2 ] वि] ( चलचलिय (स्त्री) चलिया) भूकृ 1 / 1 ( रमणी) 1/1 ( भण) भूकृ 1 / 1 ( रमणी) 1 / 1 प्रभात में सती उत्तम शुद्धमति गई शीघ्र वहाँ बैठा पति जहाँ For Private & Personal Use Only कहता है ( कहा ) पति हे प्रिया हंस की चालवाली अच्छा, ठीक जाते हैं चलते हैं) श्र ेष्ठ जिन चैत्यघर बिना विलम्ब के (सहज) ध्वनि (शब्द) पूज्य मुनि प्रकट करते हैं ( कर देंगे ) पूर्णरूप से स्वप्न (समूह) का I. कभी-कमी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हि.प्रा.व्या. 3-134)। हल हार की मणियाँ लहरानेवाली चल पड़ी रमणी कहा गया रमणी [ 129 www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy