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रखा गया देखा गया
धरियर दिउ ताम करण्यमणिभरियड
(धर→धरिय→धरियअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वा. (दिट्टअ) भकृ 1/1 अनि 'अ' स्वाथिक अव्यय [(कणय)-(मणि)-(भर→भरिय→मरियम) भूक 1/1 'अ' स्वार्थिक]
स्वर्ण तथा मरिणयों से भरा
हुमा
14. सरहसु
उत्साहसहित एकान्त में कहा गया हे प्रिय
कहिउ पिए पेक्खहि मई सम पुणवंतु
[(स) वि-(रहस) 1/1 वि] (रहस) 1/1 (कह) भूकृ 1/1 (पिअ) 8/1 (पक्ख) विधि 2/1 सक (अम्ह) 3/1 (सम) 1/1 वि (पुण्णवंत) 1/1 वि (क) 1/1 सवि (लक्ख) विधि 2/1 सक
मेरे
समान पुण्यवान कौन समझो
को
लक्खहि
15. अजवि
सिद्धिनएण निहाणे रयमि
अव्यय [(सिद्धि)--(नअ) 3/1] (निहाण) 7/1 (रय) व 1/] सक (उवाअ) 2/1 (अवर) 2/1 वि [(मइ)-(नाण) 3/1]]
आज ही योग शक्ति की युक्ति से खजाने में रचता हूँ उपाय दूसरा बुद्धिज्ञान से
उवाउ
अवरु मइनाणे
•
16 किमि
नेमि करेमि
(क) 1/1 सवि अव्यय (ले) व 1/1 सक (कर) व 1/1 सक अव्यय (खोयण) 2/1 (हो) भवि 3/1 अक (कव्वाड) 3/1 अव्यय (भोयण) 1/1
कुछ भी नहीं लेता हूँ (लूंगा) करता हूँ (करूंगा) नहीं खनन हो जायेगा कबाडीपन से
खोयणु होस कव्वाडेण
मोयण
मोजन
1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 1461
2. 'सम' (समान) के योग में तृतीया होती है।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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