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17. श्रह
कलसेसु
छुहेवि
एक्brea
बहु दविरणासए
गड्डेवि
मुक्कउ
18 अपह पव्वे
पुणुवि
t to f
पहे
पूर हु
केम
न
पइट्ठइ
19. निहिहिं 1
रयणु
एक्केक्क
लइयउ
सुपउ
करेवि
सव्यु
परिचयउ
20. प्रवरहि
समए
जाम
उग्घाडइ
रितउ
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
अव्यय
( कलस) 7/2
( छुह + एवि ) संकृ
[ ( एक्क) + (एक्कउ ) ]
[ ( एक्क) वि - ( एक्कअ ) 2 / 1 'अ' स्वार्थिक ]
( बहु) 6 / 1 वि
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(अण्णा) 7/1 स
( पव्व ) 7/1
बहुत
[ ( दविण ) + (आसए) ] [ (दविरण) - (आसा ) 3 / 1] द्रव्य की आशा से
( गड्ड + एवि ) संकृ
( मुक्कअ ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक
अव्यय
( पह) 7/1
( दिट्ठ) भूकृ 1 / 2 अनि
(पूर ) विधि 1 / 2 सक
अव्यय
( हियअ ) 7 / 1
अव्यय
( पट्ठ) भूकृ 1 / 2 अनि
(fafe) 7/1
( रयण) 1 / 1
( सव्व) 211 सवि
( परिचय 'अ' स्वार्थिक
परिचय परिचय ) भूकृ 1 / 1
तब
कलशों में
( अवर) 7 / 1 वि
(समय) 7/1
अव्यय
रखकर
एक-एक को
[ ( एक्क) + ( एक्कउ ) ]
[ ( एक्क) - (एक्कअ) 1 / 1 वि ]
(लअलइयलइयअ ) भूकृ 1 / 1 'अ' स्वार्थिक ले लिया गया
(सुण्णअ ) 2 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक
(कर + एवि ) संकृ
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गाड़कर
छोड़ दिया गया
दूसरे
समय
जब
( उग्घाड ) व 3 / 1 सक
(रित्तअ) भूकृ 2 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक
उघाड़ता है खाली को
1. कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है ( है. प्रा. व्या. 3 - 135 ) 1
दूसरे पर्व पर
फिर
पथ में
देखे गये
भरें
किस प्रकार
हृदय में नहीं
बैठी
निधि में से
रत्न
एक-एक
खाली
करके
सबको
छोड़ दिया गया
[ 103
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