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रोक्कु संपन्न
{रोक्क) 1/1 वि (दे) (संपन्नम) भूक 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक
रोकड़ी प्राप्त (हासिल) किया गया
5. महिलसहाएँ
चड्डिउ कलसे छुहेकि धरायले मड्डिङ
[(महिल→महिला)-(सहाब) 3/1] (रहस)17/1 (चड्ड→चडिअ) भूकृ 11 (कलम) 7/1 (छुह + एवि) संकृ
धरायल) 7/1 (गड→गड्डिअ) भूकृ 1/1
पत्नी के सहयोग से एकान्त में चढ़ा गया कलश में रखकर धरती में माड़ दिया गया
6.
чі трі чи прији
प्रह रविगहणे कयावि विहाणई चलियई तित्ये चयवि निमयाणइँ
अव्यय (रवि)-(महण) 7/1] अव्यय (विहाण) 7/1 (चल→चलिय) 1/2 (तित्थ) 7/1 (चय+अवि) संकृ [(निय) वि-(थाण) 2/2]
वाद में सूर्यग्रहण के अवसर पर किसी भी समय प्रभात में चले तीर्थ-स्थान को छोड़कर निज निवासों को
7.
पूरिएहिं मणिरयरणसुवाहिँ अबलोइउ संखिरिणनिहि अण्णहि
(पूर→पूरिअ) भूकृ 3/2 [(मणि)-(रयण)-(सुवष्ण) 3/2] (अवलोअ→अवलोइअ) भूक 1/1 [(संखिणी)-(निहि) 1/1] (अण्ण) 3/2 स
सम्पन्न (के द्वारा) मणि, रत्न और सोने से देख ली गयो संखिरणी की निधि अन्य (व्यक्तियों) के द्वारा
8.
मंतिज्जए आएण असारें खडहडंतरूवयसंचारें
(मंत+इज्ज) व कर्म 3/1 सक (आअ) भूकृ 3/1 अनि (असार)3/l [(खडहड्त) वकृ-(रूवय)-(संचार) 3/1]
सोचा जाता है (गया) आये हुये के द्वारा असार खड़खड़ करते हुए रुपये की गति के कारण
9. जाणाविउ
लोयाण
(जाण+आवि+अ) प्रे. भूकृ 1/1 (लोय) 4/2 (प्रा)
बतलाया गया लोगों के लिए
1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 ।
2. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 1461
3. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-135)।
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[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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