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________________ पाठ-9 जंबूसामिचरित सन्धि -9 9.8 1. विणयसिरोए कहाणउ सीसह संखिणिनिहि बरइसहो दोसइ (विणयसिरी)3/1 (कहाणअ) 1/1 (सीसइ) व कर्म 3/1 सक अनि [(संखिणी)-(निहि) 6/1] (वरइत्त) 4/1 (दीसइ) व कर्म 3/1 सक अनि विनयश्री के द्वारा कथानक कहा जाता है (कहा गया). संखिणी को निधिको दूल्हे के लिए बतलायी जाती है 2. कम्मि पुरम्मि दरिदें साडि संखिणि (क) 7/1 सवि (पुर) 7/1 (दरिद्द) 3/1 (ताड→ताडिअ) भूक 1/1 (संखिणी) 1/1 अध्यय (क) 1/1 सवि (कच्याडिअ)1 1/1 वि (दे) किसी नगर में दरिद्र (स्थिति) के द्वारा ताड़ा हुआ (प्रताड़ित) संखिणी नामक कोई कबाड़ी नाम कोवि कव्वाडि 3. दिरिण-दिणि वणे कव्वाडहो धाव भोयणमस्तु किलेसें पाव (दिण)-(दिण)7/1 (वण) 7/1 (कव्वाड) 4/1 (धाव) व 3/1 सक [(भोयण)-(मत्त) 2/13 क्रिवि (पाव) व 3/1 सक प्रतिदिन वन में कबाड़ीपन के लिए भागता है (था) भोजनमात्र दुःखपूर्वक पाता है (था) 4. भुत्तसेसु दिवसेसु पवनउ [(भुत्त)-(सेस) 1/1 वि] (दिवस) 7/2 (पवनअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वाथिक (रूवअ) 1/1 (एक्क) 1/1 वि भोजन में से बचा हुआ कुछ दिनों में प्राप्त किया गया रुपया 1. कव्वाडिअ=कावर उठानेवाला । अपभ्रंश काव्य सौरभ । [ 99 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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