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धराहिवs
एत्तिउ किज्जउ
2.
सुस्तु
सुजुत्तउ तुम्ह
दोह
te e
मि
होउ
रण तिविह
धम्मणाएण
शिउत्तर
1. पहिलउ श्रवरोप्पर 2
दिट्टि
धरह
मा
पत्तलपत्तरण चलण
करह
बीयउ
हंसावलिमारिएण
अवरोप्परु
सिंच
पाणिएख
4. जुज्झह विण्णि
96 1
( धराहिवइ ) 8 / 1
( एत्तिअ ) 1 / 1 वि
( कि + इज्ज) विधि कर्म 3 / 1 सक (सुत्त) भूकृ 2 / 1 अनि
( सुजुत्तअ ) भूकृ 2 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक
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(तुम्ह) 6/2 स (दो) 6/2 वि
अव्यय
(हो) विधि 3 / 1 अक (रण) 1 / 1
(तिविह) 1 / 1 वि
[ ( धम्म ) - ( गाअ ) 3 / 1]
( णिउत्तअ ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक
17.10
( पहिल - अ) 1 / 1 वि (दे) 'अ' स्वार्थिक (अवरोप्पर) 2 / 1 वि
(fafg) 2/1
(घर) विधि 2 / 2 सक
अव्यय
[ ( पत्तल ) - ( पत्तरण ) - (चल) 2 / 1]
(जुज्झ ) विधि 2 / 2 सक (वि) 1/2 वि
हे राजन्
इतना
किया जाए
भली प्रकार कहे हुए को
उपयुक्त
तुम
दोनों में
हो
हो
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युद्ध
तीन प्रकार का
धर्म और न्याय से निर्धारित
(कर) विधि 2 / 2 सक
( बीयअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक
[ ( हंस ) + (आवलि) + (माणिएण ) ]
[ ( हंस) - ( आवलि) - (माण माणिअ) ] भूक 3 / 1]
( अवरोप्पर) 2 / 1 वि (त्रिवि)
( सिंच) विधि 2 / 2 सक (41FOTзT) 3/1
पहले
एक दूसरे पर
दृष्टि
डालो
मत
पलकों के बालरूपी, बालों के अग्रभाग का हलन चलन करो
दूसरा
हंस को, कतारों से सम्मानित
1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है ( है. प्रा. व्या. 3-134 ) ।
2.
इस शब्द (परस्पर) के 'आपस में' 'एक दूसरे के विरुद्ध' आदि अर्थ में कर्म, करण और अपादान के एकवचन के रूप क्रिया - विशेषण की भाँति प्रयुक्त होते हैं (आप्टे, संस्कृत - हिन्दी कोश ) ।
एक दूसरे के विरुद्ध
छिड़काव करो पानी से
युद्ध करें दोनों
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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