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मनुष्य अन्तिम देहवाले
जण चरमदेह तुम्हई विग्णि
प्राप
(जण) 1/2 [[(चरम)-(देह) 1/2] वि] (तुम्ह) 1/2 स (वि) 1/2 वि अव्यय [(जय)-(लच्छि)-(गेह) 1/2]
वि
दोनों . ही विजयरूपी लक्ष्मी के घर
जयलच्छिगह
आप दोनों
विण्णि
वि
प्रखलियपयाव तुम्हई विण्णि
प्रबाधित प्रतापवाले प्राप दोनों
गंभीरराव
गंभीर वारणीवाले
5. तुम्हई
विण्णि
(तुम्ह) 1/2 स (वि) 1/2 वि अव्यय [[ (अखलिय)-(पयाव) 1/1] वि] (तुम्ह) 1/2 स (वि) 1/2 वि अव्यय [[ (गंभीर)-(राव) 1/1] वि] (तुम्ह) 1/2 स (वि) 1/2 वि अव्यय [[ (जग)-(धरण)-(थाम) 1/1] वि] (तुम्ह) 1/2 स (वि) 1/2 वि अव्यय [(रामा)+ (अहिराम)] [(रामा)-(अहिराम) 1/1]
प्राप दोनों
जगधरणयाम
जगत को, धारण करने की, शक्तिवाले आप दोनों
तुम्हई विपिण
वि
रामाहिराम
स्त्रियों के लिए प्राकर्षक
आप
6. तुम्हइं
विष्णि
दोनों
वि
मि
पयंड महिमहिलहि केरा बाहुवंड
(तुम्ह) 1/2 स (वि) 1/2 वि अव्यय (सुर) 4/2 अव्यय (पयंड) 1/2 वि [(महि)-(महिला) 6/1] परसर्ग [ (बाहु)-(दंड) 1/2] (तुम्ह) 1/2 स
देवताओं के लिए भी प्रचण्ड पृथ्वीरूपी महिला की सम्बन्धवाचक लम्बी भुजाएँ
7. तुम्हइं
प्राप
1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 157।
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[ अपभ्रंश काव्य सोरम
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