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________________ मय-मायंग [ (मय)-(मायंग) 1/2] (रुद्ध) भूकृ 1/2 अनि [(पडिगय)-(वर)-(गंध→गंधा)-(लुद्ध) भूक 1/2 अनि] (कुद्ध) भूकृ 1/2 अनि मदवाले हाथी रोक लिये गए प्रतिपक्षी, श्रेष्ठ, गंध के इच्छुक पडिगयवरगंधालुद्ध कुद्ध 7. तं णिसुरिणवि मच्छरभावभरिय हरि फुरुहुरंत (त) 2/1 स (रिणसुण+इवि) संकृ [(मच्छर)-(भाव)-(भर) भूकृ 1/2] (हरि) 1/2 (फुरुहुर) वकृ 1/2 (धाव) व 1/2 (घर) भूकृ 1/2 उसको सुनकर ईर्ष्याभाव से भरे हुए घोड़े थरथराते हुए दौड़ते हुए पकड़ लिये गये धावंत धरिय रथ खंचिय कड्डिय पग्गहोह वारिय विधत अणेय (रह) 1/2 (खंच→खंचिय) भूकृ 1/2 खींच लिये गए (कड्ढ) भूकृ 1/2 खींच ली गई [(पग्गह)+ (ओह)] [(पग्गह)-(ओह) 1/2] लगामें (वार) भूक 1/2 रोक दिए गए (विंध) वकृ 1/2 बेधते हुए (अणेय) 1/2 वि अनेक (जोह) 1/2 जोह योद्धा 17.9 पररामियसिरेहि मउलियकरहिं बाहुबलि भरहु महुरक्खरेहि [ (पणमिय) संक-(सिर) 3/2] प्रणाम करके, सिरों से [(मउल→मउलिय) भुकृ-(कर) 3/2] संकुचित किए हुए, हाथों से (बाहुबलि) 1/1 बाहुबलि (भरह) 1/1 भरत [(महुर)+ (अक्खरेहिं)][(महुर)-(अक्खर)3/2] मधुर शब्दों से 2. उग्गमियरोसपसमंतएहि उत्पन्न हुए, क्रोध को, शान्त करते हुए (के द्वारा) दोनों [(उग्गमिय) भूकृ-(रोस)-(पसमंतअ) वकृ 3/1 'अ' स्वार्थिक] (वि) 1/2 वि अव्यय (विष्णव) भूकृ 1/2 (महंतअ) 3/2 'अ' स्वार्थिक विष्णि वि विष्णविय महंतएहि ही कहे गये मन्त्रियों द्वारा प्राप 3. तुम्हइं विष्णि (तुम्ह) 1/2 स (वि) 1/2 वि अव्यय दोनों वि अपभ्रंश काव्य सौरभ ] । 93 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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