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________________ वि ཏྠཱ མལླསྶ ལླཱཝ महारह 9. भरहु मज् भुयामरु तइ चुक्कइ जइ सुमरइ जिणवरु 10. तह मेइरिग महू पोयणरु आइजिणिदे दिण्णउं भिडज पडल असि सिहिसिहह जइ ण सरइ पडिपवण्णउं 1. ता एण जंपियं किं सुविप्पियं भरणसि भो कुमारा वाणा अपभ्रंश काव्य सौरभ ] Jain Education International अव्यय ( महारह) 212 वि ( भरह ) 1 / 1 (हर) व 3 / 1 सक अव्यय ( अम्ह ) 6 / 1 स [ ( भुया) - (भर) 2 / 1] अव्यय (चुक्क) व 3 / 1 अक अव्यय ( सुमर) व 3 / 1 सक (fouraz) 2/1 (त) 6 / 1 स ( मेइणी ) 1 / 1 ( अम्ह ) 6 / 1स [ ( पोयण ) - ( जयर) 1 / 1] [ ( आई ) - ( जिणिद ) 3 / 1] ( दिण्ण) भूकृ 1 / 1 अनि ( अभिड ) विधि 3 / 1 सक ( पs ) विधि 3 / 1 सक ( असि ) 2 / 1 [ (सिहि ) - (सिहा) 7/1] अव्यय अव्यय (सर) व 3 / 1 सक ( पडिपवण्णअ ) 2 / 1 16.20 अव्यय (gar) 3/1 ( जंप - जंपिय) भूकृ 1 / 1 (क) 1 / 1 सवि (सु - विप्पिय) 2 / 1 वि ( मरण) व 2 / 1 सक अव्यय (कुमार) 1 / 1 (aror) 1/2 For Private & Personal Use Only भो योद्धा भरत हरता है (हरेगा) क्या मेरे भुजाबल को तभी उसी जमम) चूकता है (बच निकलेगा ) यदि स्मरण करता है। जिनवर को (का) 'तुम्हारी पृथ्वी मेरा पोदनपुर नगर आदि जिनेन्द्र के द्वारा दिये हुये मिले पड़े तलवार को अग्नि की ज्वाला में यदि नहीं मानता है स्वीकार किए हुए को तब दूत के द्वारा कहा गया क्या अप्रिय कहते हो कुमार बारण 1 81 www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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