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5. कि
जम्मरिण
देवहि
असिंचि
कि
6. कि
तहु
अग्गड़
8
मंदरगिरिसिहरि समच्चिर
80
सुरवइ
णच्चिउ
सिरिसइरिणियs
7. चक्कु
दंड
तं
कि रोमंचिउ
तासु
जि
सारउ
महु
पुण
कुंभारहु
केरज
णर
हिम
ररिण
जे
अव्यय
( जम्मण ) 7/1
(देव) 3/2
( अहिसिंच) भूक 1 / 1
अव्यय
[ ( मंदर ) - ( गिरि) - ( सिहर ) 7 / 1 ] (समच्च) भूकृ 1/1
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अव्यय
(त) 6 / 1 स
अव्यय
(सुरवइ) 1/1
( णच्च राच्चिअ ) भूकृ 1 / 1
[ ( सिरि) + ( सइरिणी) + (यइ ) ]
[ ( सिरि) - ( सइरिणी ) 6 / 11]
यइ अइ अव्यय
अव्यय
(रोमंचिअ ) 1 / 1 वि
( चक्क ) 1/1
(दंड) 1 / 1
(त) 1 / 1 सवि
(त) 4 / 1 स
अव्यय
( सार - अ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक
( अम्ह ) 4 / 1 स
अव्यय
(ण) 1 / 1 स
( कुंभार ) 6/1 परसर्ग
(जर) 2/2
( णिहण) व 1 / 1 सक
(रण) 7/1 (ज) 2/2 सवि
क्या
जन्म पर
देवताओं के द्वारा
अभिषेक किया गया
क्या
सुमेरु पर्वत के शिखर पर
पूजा गया
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क्या
उसके
श्रागे
इन्द्र
नाचा
लक्ष्मी, स्वेच्छाचारिणी के द्वारा,
अरे
क्यों
पुलकित
करिसूयर रहवरडिभयर हं [ ( करि ) - ( सूयर ) - ( रहवर ) - (डिमय ) - (रह ) हाथीरूपी सूअरों पर श्रेष्ठ रथों पर, छोटे रथ ( समह ) पर
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चक्र
दंड
वह उसके लिए
ही
महत्वपूर्ण
मेरे लिए
किन्तु
वह
कुम्हार का सम्बन्धार्थक
1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है, (हे. प्रा. व्या. 3-134 ) । 2. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है, (हे. प्रा. व्या. 3-134 ) ।
मनुष्य
मारता हूँ (मागा)
रण में
जो
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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