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________________ तस्स उसको (त) 6/1 स (क) 1/1 सवि (वुहत्त) 1/1 क्या बुहत्त विद्वत्ता 2. कंचणकंडे जंबुड विध मोत्तियदामें मंकडु [(कंचरण)-(कंड) 3/1] (जंबुज) 2/1 'अ' स्वार्थिक (विध) ब 3/1 सक (मोत्तिय)-(दाम) 3/1] (मंकड) 2/1 (बंध) व 3/1 सक सोने के तीर से सियार को आहत करता है मोती की रस्सी से बन्दर को बाँधता है बंध खोलपकारणि देउल मोडइ सुत्तणिमित्तु [(खीलय)-(कारण) 3/1] (देउल) 2/1 (मोड) व 3/1 सक 1 (सुत्त)-(रिणमित्त) 1/11 (दित्त) भूक 2/1 अवि (मरिण) 2/1 (फोड) व 3/1 सक खम्भे के प्रयोजन ने देवमन्दिर को तोड़ता है सूत के निमित्त दीप्त मणि को कोड़ता है दित्तु मरिण फोड 4. कप्पूरायररुक्ल कपूर के श्रेष्ठ चुक्ष को रिगसुंभइ कोद्दवछेत्तहुँ चइ पारंभइ [ (कप्पूर)+ (आयर)+ (रुक्खु)] [(कप्पूर)-(आयर2)-(रुक्ख) 2/1] (णिसुंभ) व 3/1 सक [ (कोदव)-(छेत्त) 6/1] (वइ) 2/1 (पारंभ) व 3/1 सक नष्ट करता है कोदों के खेत की बाड़ बनाता है 5. तिलखत्यु पय डहिवि चंदणतर [ (तिल)-(खल) 2/11 (पय) व 3/1 सक (डह+ इवि) संक [(चंदण)-(तरु) 2/13 (विस) 2/1 (गेण्ह) व 3/1 सक (सप्प3) 6/1 (ढरेय+अवि) संकृ तिलों की खल को पकाता है जलाकर चन्दन के वृक्ष को विष ग्रहण करता है सर्पको होकर विसु गण्हइ सप्पड ढोयदि 1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 144 । 2. आयर-→आकर श्रेष्ठ, संस्कृत-हिन्दी-कोश, आप्टे । 3. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हे.प्रा.व्या. 3-134) । क्षपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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