SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घोसइ तो परणवहुं नइ वाहि 8. रण दोसs 6. तो पणवहु जइ सुसुइ कलेवरु तो पण वहुं जइ जोविउ सुंदरु 7. तो ལྦ ཤྲཱ ལ༹ྷཱ བྷྲ ཟྭ གཽ ཝ མཱ – སྠཽ ཝ परवहु नरइ रंग झिज्जइ जो पणवहुं पुट्ठ प भज्जइ तो परवहु जइ बलु मोहट्टइ तो 70 ] Jain Education International (घोस ) व 3 / 1 सक अव्यय ( पणव) व 1 / 2 सक अव्यय ( वाहि) 1/1 अव्यय ( दीसइ) व कर्म 3 / 1 सक अनि अव्यय ( परणव) व 1 / 2 सक अव्यय ( सु-सुइ) 1 / 1 वि ( कलेवर ) 1 / 1 अव्यय ( परणव) व 1 / 2 सक अव्यय (offerer) 1/1 (सुंदर) 1 / 1 वि अव्यय (पणव) व 1/2 सक अव्यय (जर) व 3 / 1 अक अव्यय ( झिज्ज) व 3 / 1 अक अव्यय ( पणव) व 1/2 सक अव्यय (gfg) 2/1 अव्यय ( मज्ज) व 3 / 1 सक अव्यय (पणव) व 1/2 सक अव्यय (बल) 1/1 [ ( ग ) + (ओहट्टाइ ) ] ण अव्यय ( ओहट्ट ) व 3 / 1 अक अव्यय For Private & Personal Use Only कहता है ( कहा ) तब प्रणाम करते हैं यदि व्याधि नहीं देखी जाती है। तब (तो) प्रणाम करते हैं यदि अत्यन्त पवित्र शरीर तब (तो) प्रणाम करते हैं यदि जीवन सुन्दर तब (तो) प्रणाम करते हैं जो जीर्ण होता है न क्षीण होता है तो प्रणाम करते हैं यदि पीठ नहीं भंग करता है तो प्रणाम करते हैं यदि बल नहीं, कम होता है तो [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy