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________________ पणवहुं जइ (पणव) व 1/2 सक अव्यय (सुइ) 1/1 अव्यय (विहट्ट) व 3/1 अक प्रणाम करते हैं यदि पवित्रता नहीं नष्ट होती है विहट्ट तो 9. तो पणवहुं जइ प्रणाम करते हैं यदि मयण ग अव्यय (पणव) व 1/2 सक अव्यय (मयण) 1/1 अव्यय (तुट्ट) व 3/1 अक अव्यय (पणव) व 1/2 सक अव्यय (काल) 1/1 अव्यय (खुट्ट) व 3/1 अक प्रेम नहीं खण्डित होता है तो परणवहं जइ कालु तो प्रणाम करते हैं यदि रण नहीं क्षोरण होती है 10. कंठि कयंतवासु गले में यम का फंदा (कंठ) 7/1 [ (कयंत)-(वास) 1/1] अव्यय (चहुट्ट) व 3/1 अक (दे) अव्यय (पणव) व 1/2 सक नहीं चिपकता है तो . तो प्रणाम करते हैं परणवहुं जइ रिद्धि अव्यय (रिद्धि) 1/] अव्यय (तुट्ट) व 3/1 अक यदि वैभव नहीं घटता है 11. जइ जम्मजरामरण हरइ चउगइदुक्खु रिणवारइ अव्यय [(जम्म)-(जरा)-(मरण) 2/2] (हर) व 3/1 सक [(चउ) वि-(गइ)-(दुक्ख) 2/1] (रिणवार) व 3/1 सक अव्यय (पणव) व 1/2 सक (त) 4/1 सवि यदि जन्म, जरा और मरण को(का) हरण करता है चार गति के दुःख को दूर करता है तो परणवहुं तासु प्रणाम करते हैं उस (के लिए) अपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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