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करंति
可
गृहमाईव
नउ
णवंति
तुह
जयराईवई
8. देति
रण
करभरू
केसरिकंधर
पर
मुहिय
इ
मुंजंति
वसुंधर
9. श्रज्ज
कि
ते
सिज्यंति
གླ ཝཱ མ སྠཽ ཤྲཱ ཤྲཱ ཚ༷ སྠཽ ཕ
जि
पइसड़
म
1. ता
विगया
बहुवरा
68 ]
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(कर) व 3/2 सक
अव्यय
[ (ह) + (मा) + (अईवई ) ]
[(णह) - (भा) - (अईव ) 2 / 2 ]
अव्यय
(णव) व 3 / 2 सक
( तुम्ह ) 6/1
[ ( पय) - (राईव ) 2/23
(दा) व 3/2 सक
अव्यय
[ ( कर) - (मर) 2 / 1]
[[ ( केसरि ) - (कंधर) 1 / 11 वि
अव्यय
( मुहिय ) 6 / 1 (दे )
अव्यय
(मुंज) व 3/2 सक
( वसुंधरा ) 2 / 1
अव्यय
अव्यय
(त) 1/2 स
(सिज्झ ) व 3 / 2 सक
अव्यय
(ज) 3 / 1 स
अव्यय
( पइस) व 3 / 1 सक
( पट्टण ) 7/1
( चक्क ) 1 / 1
अव्यय
(त) 3 / 1 स
अव्यय
16.7
अव्यय.
( विगय) मूकृ 1 / 1 अनि
( बहुयर ) 1 / 1
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करते हैं
नहीं
नखवाले, कान्ति से,
अत्यधिक
नहीं
प्रणाम करते हैं
तुम्हारे
चरण (रूपी) कमलों को
देते हैं
नहीं
कर की राशि
सिंह के समान गर्दनवाले
किन्तु
बिना मूल्य के
ही
भोगते हैं
पृथ्वी को
श्राज
भो
वे
जीते जाते हैं
नहीं
जिस कारण से
ही
प्रवेश करता है
नगर में
चक्र
नहीं
उस कारण से
ही
तब
गया
दूत
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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