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केरो
7. जारणमि
सस
भामण्डलराय हो
जाणमि
सामिरिम
रज्ज हो
आय हो
8. जाणमि
जिह
श्रन्तेउर-सारी
जार मि
जिह
महु पेसण-गारी
9. मेल्लेप्पिनु गायर लोएप
महु
घरे
उब्भा
करेवि
कर
जो
दुज्जसु
उप्परे
घित्तउ
एउ
रण
जाणहो
एक्कु
पर
1. तहिं अवसरे रयणास जाएं
अपभ्रंश काव्य सौरभ ]
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अव्यय
(जाण) व 1 / 1सक (ar) 2/1
J. ( मामण्डल ) - (राय) 6/11
(जाण) व 1 / 1
क
( सामिणी ) 2 / 1
( रज्ज) 6/1 (आय) 6 / 1 वि
( जबग) व 1 / 1 सक
अव्यय
[ ( अन्तेउर) - ( सार (स्त्री) सारी) 1 / 1 वि ] (जार) व 1 / 1 सक
अव्यय
( अम्ह) 4 / 1 स
I (पेण) - (गार (स्त्री) गारी ) 1 / I वि]
→
(मेल्ल + एप्पिणु) संकृ
[ ( गायर ) - (लोअ ) 3 / 11
( अम्ह) 4 / 1 स
(घर) 7/1
( उब्भ) 2 / 2 वि (कर + एवि ) संकृ
(कर) 212
(ज) 1 / 1 सवि
( दुज्जस ) 1/1
अव्यय
(चित्त) भूकृ 1 / 1 अनि
(अ) 1 / 1 सवि
अव्यय
(जाण) 4/1 (एक्क) 1/1 वि
अव्यय
83.4
(त) 7/1 स ( अवसर ) 7/1
[ ( रयणासव ) - ( जाअ ) भूकृ 3 / 1 अनि ]
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सम्बन्ध सूचक परसर्ग
जानता हूँ
बहन को भामण्डल राजा की
जानता हूँ
स्वामिनी को
राज्य की
इस ( को )
जानता हूँ
जिस प्रकार
अन्तःपुर में श्र ेष्ठ
जानता हूँ जिस प्रकार
मेरे लिए
आज्ञा (पालन) करनेवाली
मिलकर
नगर के लोगों द्वारा
मेरे लिए
घर में
ऊँचे
करके
हाथों को
जो
अपयश
ऊपर
डाला गया
यह
नहीं
समझने (जानने के लिए
एक
किन्तु
उस ( पर)
अवसर पर
रत्नाश्रव के पुत्र (द्वारा)
[ 57
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