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________________ कोक्किय तियड विहिसरग-राएं (कोक-→कोक्किया) भूकृ 1/1 (तियडा) 1/1 [ (विहीसरण)-(राअ) 3/1] बुलायी गई विजटा विभीषण राजा के द्वारा 2. बोल्लाविय बुलवाई गयी यहाँ पर एत्तहे वि तुरन्तें [(बोल्ल+आवि) प्रे. भूक 1/1] अव्यय अव्यय क्रिविअ (लंकासुन्दरी) 1/1 अव्यय (हणुवन्त) 3/1 लङ्कासुन्दरि तो हणुवन्तें तुरन्त लंकासुन्दरी तब हनुमान के द्वारा 3. विरिण दोनों वि विण्णवन्ति पणमन्तिउ सीय-सइत्तण गव्यु वहन्तित (विष्ण→विण्णी) 1/1 वि अव्यय (विण्णव) व 3/2 सक (परणम→पणमन्त→पणमन्ती)बकृ 1/2 [(सीया)-(सइत्तण) 6/1] (गब्ब) 2/1 (वह→वहन्त→वहन्ती) वकृ 1/2 कहती हैं प्रणाम करती हुई सीता के सतीत्व के गर्व को धारण करती हुई 4. देव देव जई हुप्रवह डाइ जइ मारुउ पड-पोट्रले वज्झइ (देव) 8/1 अव्यय (हुअवह) 1/1 (डज्झइ) व कर्म 3/1 सक अनि अव्यय (मारुअ) 1/1 [(पड)-(पोट्टल) 7/1] (वज्झइ) व कर्म 3/1 सक अनि यदि अग्नि जलाई जाती है यदि हवा कपड़े को पोटली में बांधी जाती है 5. पायाले गहङ्गणु लोट्टइ अव्यय यदि (पायाल) 7/1 पाताल में [(णह+अङ्गणु)] [(णह)- (अङ्गण) 1/1] (लोट्ट) व 3/1 अक लोटता है [(काल)+ (अन्तरेण)][(काल)-(अन्तर)3/1] समय बीतने से (काल) 1/1 काल अव्यय यदि (रिणटु→तिट्ट) व 3/1 अक नष्ट होता है कालान्तरेण कालु जइ तिद्वइ यदि अव्यय (उप्पज्ज) व 3/1 अक उप्पज्जइ उत्पन्न होता है 58 ] [ अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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