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________________ कलहंसीहि स्व अजलु महासर 6. कलयण्ठीहि स्व माहवणिग्गमु णाइणिहिं 46 व हय-गरुड-भुयङ्गमु 7. वहुल-पोसु व तारा - पन्तिहिं तेम दसास-पासु दुक्कन्तिहिँ 8. दस- सिय दस-सेहरु दस-मउडड गिरि व स- कन्दरु स-तरु स- कूडउ 9. रिएबि अवत्थ दसाण हो हा हा सामि भरणन्तु स- वेणु अन्तेउय मुच्छा-बिहलु णिवडिउ Jain Education International [ ( कलहंस (स्त्री) व लहंसी ) 3/2] अव्यय → ( अजल ) 1 / 1 वि [ (महा) वि - (सर) 1/1] ( कलयण्ठी) 3/2 अव्यय [ ( माहव ) - ( णिग्गम) 1 / 1] (गाइणी) 3/2 अव्यय [ ( हय) भूकृ अनि - (गरुड ) - ( भुयङ्गम) 1 / 1] [ ( बहुल ) - (पओस ) 1 / 1 वि] अव्यय [(arr)-(fa) 3/2] अव्यय [ (दस) + (आस) + ( पासु) ] [ (दस) वि - (आस) - ( पास ) 1 / 1] ( ढुक्क ढुक्कंत ढुक्कंती ) व 3/2 [ (दस) वि- (सिर) 1 / 1] (दस) वि - ( सेहर ) 1 / 1] [ (दस) वि- ( मउड-अ) 1 / 1 'अ' स्वार्थिक ] (fafe) 1/1 अव्यय ( स - कन्दर) 1 / 1 वि (स-तरु) 1 / 1 वि ( स - कूडअ ) 1 / 1 वि 'अ' स्वार्थिक ( णिअ + एवि ) संकु ( अवस्था ) 2 / 1 ( दसाणण ) 6/1 अव्यय ( सामि ) 1 / 1 ( भणभणन्त) व 1/1 (स-वेयण) 1 / 1 वि ( अन्तेउर) 1/1 [ ( मुच्छा) - ( विहल ) 1 / 1] ( णिवड विडिअ ) भूकृ 1 / 1 For Private & Personal Use Only राजहंसनियों द्वारा जैसे जलरहित बड़ा तालाब कोकिलों द्वारा जैसे वसन्त ऋतु का जाना नागिनियों द्वारा जैसे गरुड से मारा हुश्रा कृष्णपक्ष, दोषों से युक्त जैसे तारों की पंक्तियों द्वारा उसी प्रकार दसमुखवाले के पस जाती हुई ( रानियों) के द्वारा दससिर दस शिखा दसमुकुट पर्वत मानो गुफा - सहित वृक्ष - सहित शिखर- सहित देखकर अवस्था को रावरण को हाय-हाय स्वामी कहते हुए पोड़ा सहित सर्प अन्तःपुर मूर्च्छा से व्याकुल गिरा [ अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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