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________________ महिहिं झत्ति णिच्चेयणु (महि) 7/1 अव्यय (णिच्चेयण) 1/1 वि पृथ्वी पर शीघ चेतना-रहित सन्धि-77 माइ-विनोएं जिह-जिह विभीषण विहीसणु सोउ तिह-तिह दुक्खरण रुवा स-हरि-वल-वाणर-लोउ [(भाइ)-(विओअ) 3/1] भाई के वियोग से अव्यय जैसे-जैसे (कर) व 3/1 सक करता (विहीसण) 1/1 (सोअ)2/1 शोक अव्यय वैसे-वैसे (दुक्ख) 3/1 दुःख के कारण (रुव) व 3/1 अक रोते [(स)-(हरि)-(वल)-(वाणर)-(लोअ)1/1] राम, लक्ष्मरण सहित वानर जाति के लोग 77.1 दुम्मणु (दुम्मण) 1/1 वि दुःखी मन दुम्मरण-वयरणउ [(दुम्मण) वि-(वयराअ)1/I 'अ' स्वा.]वि] उदास मुखवाला ग्रंसु-जलोल्लिय-गयउ [(अंसु)+(जल)+ (उल्लिय)+(रायणउ)] अाँसु के जल से गीली हई [[(अंसु)--(जल)-(उल्ल→उल्लिय) भूकृ- आँखोंवाला (रायणअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक] वि] (ढुक्क) 1/1 वि (दे) पहुँचा कइद्धय-सत्थर [(कइद्धय)-(सत्थअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक ] कपि (चिह्नयुक्त) ध्वज (लिए हुए) जन-समूह जहिं अव्यय जहाँ रावणु (रावण) 1/1 रावण पल्हत्थउ (पल्हत्थअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक मार गिराया गया तेणी समाणु विणिग्गय-णामेहि विठ्ठ (त)3/1 स उसके अव्यय साथ [[ (विणिग्गय) भूक अनि-(णाम) 3/2] वि] फैले हुए नामवाले (विख्यात) (दिट्ठ) भूक 1/1 अनि देखा गया (दसाणण) 1/1 रावण [(लक्खण)-(राम) 3/2] राम और लक्ष्मण द्वारा दसागणु लक्खण-रामेहि 1. साथ (समाणु) के योग में तृतीया विभक्ति का प्रयोग किया गया है । अप त्रंश काव्य सोरम ] [ 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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