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1.
रुनइ
विहोसण
सोयककमिय
तुह सत्यमिउ
सु अत्यमियत
2. तुहुँ
ग
जिनोसि
ཝཱ ཝཱ ར ཝ བྷཱ སྠཽཎྜཱ
सयलु जिउ
वन्दिय-जणु
3. तुहुँ
पडिप्रोऽसि
சு पडिड
पुरन्दरु
42 ]
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पाठ-4
पउमचरिउ
सन्धि - 76
76.3
(रुअ ) व 3 / 1 अक
( विहीण ) 1 / 1
[ ( सोय ) - (क्कमक्कमियक्कमियअ )
भूकृ 1 / 1 'अ' स्वार्थिक ]
( तुम्ह ) 1 / 1 स
[ (ण) + ( अत्यमिउ ) ] ग= अव्यय ( अत्थम (ater) 1/1
( अत्थम ) भूक 1 / 1 'अ' स्वार्थिक
अत्थमिअ ) भूकृ 1 / 1
( तुम्ह) 1 / 1 स
अव्यय
[ ( जिओ) + (असि ) ] जिओ (जिअ ) भूकृ 1 / 1 अनि असि (अस) व 2 / 1 अक (सयल) 1 / 1 वि (जिअ ) भूकृ 1 / 1 अनि (fageror) 1/1 ( तुम्ह ) 1 / 1 स
अव्यय
[ ( मुओ) + (असि ) ] ओ ( अ ) भू 1 / 1 अनि असि (अस) व 2 / 1 अक
( मुअमुअल) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक [ ( वन्द) भूकृ - ( जण ) 1 / 1]
( तुम्ह ) 1 / 1 स
[ ( पडिओ ) + (असि ) ] पडिओ (पड पडिअ ) भूकृ 1 / 1
असि (अस) व 2 / 1 अक
अव्यय
(पड - पडिअ ) भूकृ 1/1 ( पुरन्दर ) 1 / 1
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रोता है ( रोया) विभीषरण
शोक से युक्त
तुम
नहीं, समाप्त हुए
वंश
समाप्त हो गया
तुम
नहीं
जीते गए,
हो
सकल
जीत लिया गया
त्रिभुवन
तुम
नहीं
भरे,
हो
मर गया
सम्मानित जन समुदाय
तुम
पड़े,
नहीं
पड़ा
इन्द्र
[ अपभ्रंश काव्य सौरभ
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