SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अव्यय (सुब्बहि) व कर्म 2/सक अनि नहीं सुने जाते हो सुब्वहि दिवे दिवे धुव्वहि चमर-सहासेहिं (दिव) 711 (दिव) 7/1 (धुव्वहि) व कर्म 2/1 सक अनि [(चमर)-(सहास) 3/2 वि] अव्यय अव्यय (त) 6/1स (क) 1/1 स अव्यय (पास) 71 प्रतिदिन पंखा किये जाते (थे) हजारों चवरों से आज क्यों तुम्हारे कोई भी तेज को वि नहीं पासेहि। आस-पास में दिवे-दिवे लोयहिं बुच्चहि राउ अज्जु (दिव) 7/1 (दिव) 7/1 (लोय) 3/2 (वुच्चहि) व कर्म 2/1 सक अनि (राणअ) 1/1 'अ' स्वाथिक अव्यय अव्यय (दीसहि) व कर्म 2/1 सक अनि (विदाणअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक प्रतिदिन लोगों के द्वारा बोले (कहे) जाते थे राणा माज क्यों दिखाई देते हो निस्तेज (म्लान) बोसहि विद्दारराज णिसुणेवि बलेष पजम्पिउ भरहहो सयलु वि रज्जु समपिउ (त) 2/1 स (णिसुण+एवि) संक (बल) 3/1 (पजम्प→पजम्पिअ) भूक 111 (भरह) 4/1 (सयल) 1/1वि अव्यय (रज्ज) 11 (समप्प→समप्पिअ) भूक 1/1 उसको सुनकर बलदेव के द्वारा कहा गया भरत के लिए (को) सम्पूर्ण राज्य दे दिया गया है 8. जामि जाता हूँ हे माँ माए (जा) व 1/1 सक (माआ) 8/1 (दिढ) 1/1 वि [ (हिय)-(वअ)2 7/1] विढ हियवए मन की अवस्था में 1. श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 1461 2. वअ→प→पद-स्थान, अवस्था । अपभ्रंश काव्य सौरभ ] [ 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy