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________________ 23.3 1. चिन्तावण्ण चिन्ता में डूबे हुए गराहिउ जावेहि [(चिन्ता + (आवण्ण)] [(चिन्ता)-(आवण्ण) भूकृ 1/1 अनि] (णराहिअ) 11 अव्यय (बल)1/1 [(णिय) वि-(णिलअ) 2/1] (पराइअ) भूक 1/1 अनि अव्यय बलु मराधिप (राजा) जब बलदेव निज भवन को गये रिणय-णिलउ पराइउ ताहिं तब दुम्मणु णिहालिउ मायए (दुम्मण) 1/1 वि (ए) वकृ 1/1 (णिहाल→णिहालिअ) भूक 1/1. (माया) 3/1 अव्यय (विहस) संकृ (वुत्त) भूकृ 1/1 अनि [(पिय) वि-(वाया) 3/1)] उदास मनवाला प्राता हुआ देखा गया माता के द्वारा फिर भी हंसकर कहा गया प्रिय वाणी से पुणु विहसेवि वुत्तु पिय-वायए प्रतिदिन चढ़ते हो (थे) घोड़े और हाथी पर 3. दिवे दिवे घडहि तुरङ्गम-णाएहिं मज्ज़ काई अणुवाहणु पाएहिं (दिव) 7/1 (दिव) 7/1 (चड) व 2/1 सक [(तुरङ्गम)-(णाअ)1 7/2] अव्यय अव्यय (अण+उवाहण)2=अव्यय (पाअ) 3/2 भाज क्यों, कैसे बिना जूतों के पैरों से दिवे दिवे वन्दिण-विन्देहि युवहि अज्जु (दिव) 7/1 (दिव) 7/1 [(वन्दिण)-(विन्द)3/2] (थुव्वहि) व भाव 2/1 अक अनि अव्यय अव्यय (थुन्वन्त) वकृ कर्म 1/1 अनि प्रतिदिन स्तुति-गायकों के समूहों द्वारा स्तुति किये जाते (ये) प्राज कैसे स्तुति किये जाते हुए युव्यन्तु J. णाग→णाअ→णाएहिं (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ-146) । 2 उवाणह→उवाहण 16 ] [ अपघ्रश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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