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________________ 7. 8. 9. वरो मग्गिओ णाह सो एस कालो महं रगन्दरो ठाउ रज्जाणुपालो पिए E E E E होउ एवं सावलेवो समायारिओ लक्खरगो रामएवो जइ तुहुँ पुत्तु मह तो एत्तिउ पेणु किज्जइ छत्तई वइसरगड वसुमइ भर हो अप्पिज्जइ अपभ्रंश काव्य सौरम Jain Education International ] (वर) 1 / 1 ( मग्ग) भूकृ 1 / 1 (UTTE) 8/1 (त) 1 / 1 सवि ( एत) 1 / 1 सवि (काल) 1/1 ( अम्ह ) 6 / 1 स ( णन्दण) 1/1 (ठा) विधि 3 / 1 अक [ (रज्ज) + (अणुपालो ) ] [ ( रज्ज) - ( अणुपाल ) 1 / 1 वि ] (fq37) 8/1 ( हो ) विधि 3 / 1 अक अव्यय अव्यय ( तुम्ह) 1 / 1 स (पुत्त ) 1 / 1 ( अम्ह ) 6 / 1 स अव्यय ( एत्तिअ ) 1 / 1 वि (पेसण) 1 / 1 ( किज्जइ) व कर्म 3 / 1 सक अनि (छत्त) 1 / 2 वर माँगा हुआ नाथ ( वइसणअ) 1/1 ( वसुमइ ) 1/1 ( भरह ) 4 / 1 ( अप्प ) व कर्म 3 / 1 सक वह यह समय मेरा पुत्र रहे राज्य का पालनकर्ता अव्यय तब ( स + अवलेव) 1 / 1 गर्व सहित ( सं + आयार आयारिअ समायारिअ ) बुलाए गए भूकृ 1 / 1 ( लक्खण) 1/1 (राम) 1 / 1, एवो-अव्यय प्र होवे इसी प्रकार लक्ष्मरण राम, और ཝཱ ཤྲཱ ཝཱ ཝཱ पुत्र मेरे तो इतनी आज्ञा पालन की जाए ( की जाती है) छत्र आसन पृथ्वी भरत के लिए दी जाती है (दे दी जाए) For Private & Personal Use Only [ 15 www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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