________________
9.
होज्जहि जं
2.1.
वुम्मिय
तं
सव्यु
खमेज्जहि
जें
आउच्छिय
माय
हा - हा
पुत
भरणन्ती
अपराइय
महएवी
महिले
पडिय
दयन्ती
18 1
Jain Education International
( हो ) विधि 2 / 1 अक (ज) 1 / 1 सवि
( दुम्मिय) भूकृ 1 / 1 अनि
(त) 2 / 1 स
( सव्व) 2 / 1 सवि
(खम ) विधि 2 / 1 सक
अव्यय
(आउच्छ आउच्छिया ) भूकृ 1 / 1
(माया) 1 / 1
( अपराइया) 1/1
( महएवी) 1 / 1
रहना
जो
( महियल) 7/1
( पड) भूकृ 1 / 1
कष्ट पहुँचाया गया
उस
सबको
क्षमा करना
अव्यय
( पुत्त ) 8 / 1
हाय पुत्र
( भणभणत (स्त्री) मणन्ती ) वकृ 1 / 1 कहती हुई
अपराजिता
महादेवी
धरती पर
जिस तरह से
पूछी गयी
माता
शोकार्यक
गिर पड़ी
( रुयरुयन्त (स्त्री) रुयन्ती) व 1 / 1 रोती हुई
For Private & Personal Use Only
[ अपभ्रंश काव्य सौरम
www.jainelibrary.org