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________________ तेण किर पहु-वियप्पु गर परम-विसायहो। राम-वप्पु (त) 3/1 सवि (किअ) भूकृ 1/1 अनि [(पहु)-(वियप्प) 1/1] (गअ) भूकृ 1/1 अनि [(परम) वि-(विसाय) 6/1] [(राम)-(वप्प) 1/1] उस किया गया राजा के द्वारा विचार प्राप्त हुए अत्यन्त दुःख को राम के पिता सच्चउ चलु सत्य चंचल जीवन कौनसा जीविउ कवणु सोक्खु (सच्चअ) 1/1 (चल) 1/1 वि (जीविअ) 1/1 (कवण) 1/1 सवि (सोक्ख) 1/1 (त) 1/1 स (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि (सिज्झ) व 3/1 अक (ज) 3/1 स (मोक्ख) 1/1 किन्जाइ सिज्झइ नेण मोक्ख वह अनभव किया जाता है सिद्ध होता है जिससे मोक्ष 9. सुहु महु-विन्दु-समु मेरु-सरिसु पवियम्भह वरि (सुह) 1/1 [(महु)-(विन्दु)-(सम) 1/1 वि] मधु की बिन्दु के समान (दुह) 1/1 [(मेरु)-(सरिस) 1/1 वि] मेरु पर्वत के समान (पवियम्भ) व 3/1 अक लगता है अव्यय अच्छा (त) 1/1 सवि वह (कम्म) 1/1 (किअ) भूक 1/1 अनि किया हुआ अव्यय जिससे (पअ) 1/1 [(अजर) वि-(अमर) 1/1 वि] अजर-अमर (लब्भइ) व कर्म 3/1 सक अनि प्राप्त किया जाता है कर्म कम्म किउ पउ पद अजरामर लब्मइ 22.3 1. कं दिवसु (क) 1/1 सवि (दिवस) 1/1 अव्यय किसी दिन 1. कभी-कभी द्वितीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है (हे. प्रा. व्या. 3-134)। 10 ] [ अपभ्रंश काव्य सौरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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