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________________ कण्ण लोयरण रिपरन्ध (कण्ण) 1/2 (लोयण) 1/2 (णिरन्ध) 1/2 वि: कान आंखें बिल्कुल अंधो सिर मुहे पक्खलई वाय (सिर) 1/1 सिर (कम्प) व 3/1 अक हिलता है (मुह) 7/1 मुख में (पक्खल) व 3/1 अक लड़खड़ाती है (वाया) 1/1 वारणी (गय) भूक 1/2 अनि टूट गए (दन्त) 1/2 दाँत (सरीर) 6/1 शरीर को (ण?→(स्त्री)णट्ठा) भूकृ1/1 अनि नष्ट हो चको (छाया) 1/1 कान्ति गय दन्त सरीरहो गट्ठ छाय 5. परिगलिउ रहिरु क्षीण हो चुका थिउ णवर चम्म (परिगल) भूकृ 1/1 (रुहिर) 1/1 (थिअ) भूकृ 1/1 अनि अव्यय (चम्म) 1/1 (अम्ह) 6/1 स अव्यथ रह गयो केवल चमड़ी मेरा एत्थ यहाँ अव्यय (हुअ) भूकृ 1/1 अव्यय (अवर) 1/1 वि (जम्म) 1/1 प्रवरु जम्म मानो दूसरा जन्म गिरि-णइ-पवाह I (गिरि)-(णइ)-(पवाह) 2/1] पर्वतीय नदो के (समान) प्रवाह को नहीं धारण करते हैं वहन्ति पाय गन्धोवउ पावउ केम राय अव्यय (वह) व 3/2 सक (पाय) 1/2 (गन्धोवअ) 2/1 (पाव) विधि 3/1 सक अव्यय (राय) 8/1 गन्धोदक को पावे किस प्रकार 7. वयणेरण (वयण) 3/1 कथन से अप ग्रंश काव्य रचना ] [ 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001710
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages358
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, L000, & L040
File Size13 MB
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