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________________ भोज को मालूम हुआ कि कवि धनपाल इस समय साचोरमें है. भोज के भेजे हुए विश्वासपात्र पुरुष धनपालको बुलाने के लिए साचोरमें पहुंचे. उन्होंने धनपालको भोज का संदेश वैनयिकी भाषा द्वारा सुनाया. तब धनपालने कहा कि अब मैं इधर रहकर भगवान महावीर की सेवामें लगा हुआ हूं और सभाके जयविजय इत्यादि खेदवर्धक झंझटो में मेरा मन नहीं लगता, मैं उससे उदासीन हो गया हूं, अतः नहीं आ सकता. इस बातको सुनकर राजा भोजको, अपनी प्रतिष्ठाकी तथा पंडित सभाकी भी प्रतिष्ठाकी बडी चिंता हुई. तब राजाने फिरसे अपने खास आदमियों को मेजकर कहलाया कि " श्रीमुञ्जस्य महीभर्तुः प्रतिपन्नसुतो भवान् । ज्येष्ठ; , अहं तु कनिष्ठोऽस्मि तत् किं गण्यं लघोर्वचः ॥२७०॥ पुरा ज्यायान् महाराजः त्वामुत्सङ्गोपवेशितम् । प्राहेति विरुदं तेऽस्तु श्रीकूर्चालसरस्वती ॥२७१।। त्यक्त्वा वयं त्वया वृद्धा राज्यमाप्ताश्च भाग्यतः । जये पराजये वाऽपि-अवन्तिदेशः स्थलं तव ॥२७२॥ ततो मत्प्रियहेतोः त्वमागच्छ गच्छ माऽथवा । जित्वा धारां त्वयं कौलः परदेशी प्रयास्यति ॥२७३॥ तत् ते रूपं विरूपं वा जानासि स्वयमेव तत् । अतः परं प्रवक्तुं न साम्प्रतं नहि बुध्यते ॥२७४॥ प्राकृतोऽपि स्वयं ज्ञानं कुरुते नेतरत् पुनः । किं पुनस्त्वं महाविद्वान् तद् यथारुचितं कुरु ॥२७५।। धनपाल इति श्रुत्वा स्वभूमेः पक्षपाततः । तरसाऽगात् ततो ज्ञात्वा राजाभिमुखमागतम् ॥२७६॥ दृष्टं च पादचारेण भूपं संगम्य धीनिधिम् । दृढमाश्लिष्य चावादीत् क्षमस्वाविनयं मम ॥२७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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