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________________ रहते थे और निर्दोष मार्ग पर प्रतिष्ठा के साथ स्थित थे. उसकी छोटी बहन सुंदरी निरवद्य मार्ग पर याने धर्ममार्ग पर रही हुई थी, उस समय अपनी छोटी बहन सुंदरी के लिए अंध ज ण कि वा कुस ल इन शब्दों के अंतिम अंतिम वर्ण अनुक्रमसे जिस कवि के नाममें लगे हुए हैं उसने अर्थात् धणवाल-धनपालने इस देशी (भाषाके कोश ) की रचना की. पूर्वोक्त प्रथम गाथामें ही " 'पाइअलच्छी' को कहूंगा", ऐसा कह कर के कोशकारने ही इस कोश का 'पाइअलच्छी' (प्राकृतलक्ष्मी) नाम सूचित किया है. इस कोशमें देशी वा देश्य शब्द भी दिये गए हैं अतः इसका दूसरा ‘देशी' नाम भी ग्रंथकारने ग्रंथ के अंत भागमें बताया है. अथवा प्राकृतभाषा देशकी-जनपदकी-भाषा है ऐसा सूचन. करने के लिए भी ग्रंथकारने 'देशी' नाम बताया हो यह असंभवित नहीं. उक्त पद्योंसे-धनपालने ग्यारहवीं सदी में इस कोश की रचना कीऐसा सुनिश्चित रूपसे प्रतीत होता है तथा उसकी छोटी बहनका नाम 'सुंदरी' था यह भी निश्चित होता है. उस समय मालव नरेशने मान्यखेट नगर पर छलसे आक्रमण किया था ऐसी भी सूचना मिल जाती है. ___ क्योंकि धनपालने इस कोश को १०२९ में रचा है इसलिए उसका जन्मसमय दसवीं सदीमें माननेमें कोई बाधक प्रमाणका होना संभव नहीं जान पडता. कोशकार धारानगरी के प्रतिष्ठित पुरुष हैं और निर्दोष मार्ग पर चलनेवाले हैं ऐसा भी ‘परिट्ठिएण' तथा 'अणवजे मग्गे परिट्टिएण' पद से सूचित होता है और कोश की रचना धारानगरी में हुई है यह बात भी 'धारानयरीए' पदसे सूचित होती है. धनपालकी छोटी बहन प्राकृत भाषाकी विद्यार्थिनी थी, संभव है वह संस्कृत भाषाको अच्छी तरह जान चुकी होगी. तथा धनपालकी पुत्रीने धनपालरचित तिलकमंजरी नामक कथाकी अपनी स्मृति के बलसे रक्षा की थी. इससे मालूम होता है कि धनपालका कुटुंब एक प्रकारका सरस्वती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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