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कोशकार महाकवि
धनपाल
धनपाल महाकविने स्वयं ही इस कोश के प्रांत भाग में अपने नामका, समयका तथा कोश के आदि श्लोक में कोश के नामका जो सूचन किया है वह इस प्रकार है :
"विक्कमकालस्स गए अउणत्तीसुत्तरे सहस्सम्मि । मालवनरिंदधाडीए लूडिए मनखेडम्मि ॥ धारानयरीए परिट्ठिएण' मग्गे ठिआए अणवजे । कजे कणि?बहिणीए 'सुंदरी' नामधिज्जाए ॥ कइणो अंध ज ण कि वा कुस ल त्ति पयाणमंतिमा वण्णा । नामम्मि जस्स कमसो तेणेसा विरइया देसी” ॥
- (पाइअलच्छीनाममाला गा० २७६-२७८)
तथा शुरू की प्रथम गाथामें लिखा है कि
" वुच्छं 'पाइअलच्छि' त्ति नाममालं निसामेह" ॥ अर्थात् विक्रमसंवत् १०२९ में जिस समय मालवराजने छल करके मन्नखेड-मान्यखेड- (मनखेड. जि-नासिक ता. पेंठ) नगर पर हमला करके उस नगरको लूट लिया तब कोशकार धनपाल धारा २नगरी में प्रतिष्ठितरूपसे
१. 'अणवज्जे मग्गे परिट्ठिएण' इस प्रकार भी अन्वय कर सकते हैं अर्थात् 'निर्दोष मार्ग पर प्रतिष्ठा पाये हुए धनपालने' ऐसा भी अर्थ बराबर है.
२. कोश के अंतमें इन पद्योंका जो अर्थ सूचित किया है उसको इस अर्थ के अनुसार समझ लेना तथा संगत करना चाहिए. ( संपा०)
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