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प्राकृत भाषा का संक्षिप्त परिचय
प्रकृति शब्दका अर्थ स्वभाव है अर्थात् जो भाषा मनुष्यकी स्वाभाविक है उसका नाम प्राकृत भाषा-तात्पर्य यह हुआ कि जो भाषा जिनकी मातृभाषा है- जन्मते ही जो भाषा जिनको अपनी मातासे प्राप्त है- जिस भाषाको बोलने के लिए किसी भी प्रकार की किताबों का अभ्यास जरूरी नहीं है उस भाषाका नाम प्राकृत भाषा. प्राकृत शब्दका ऊपर जो अर्थ बताया गया है वह उसका यौगिक अर्थ है- नामानुरूप अर्थ है.
इस अर्थको लेकर जगतकी सब मातृभाषामें प्राकृत के अर्थमें आ जाती हैं- क्या गुजराती, क्या मराठी, क्या बंगाली, क्या अंग्रेजी और क्या अरबी वगैरह सब भाषाएं जिन जिनकी मातृभाषारूप हैं वे उन उनके लिए प्राकृतरूप हैं.
प्रस्तुत में जिस भाषाका संक्षिप्त परिचय देना है वह एक समय में भारतीय आमजनताकी बोलचालकी-जन्मजात-भाषा थी, अतः यद्यपि वह भाषा वर्तमान में किसीकी भी मातृभाषा नहीं है-जन्मजात भाषा नहीं है तो भी उसके पूर्वके स्वरूपको लेकर वह वर्तमानमें जन्मजात भाषा न होकर भी 'प्राकृत' शब्दसे प्रसिद्धि पा चुकी है- यह भाषा वर्तमानमें केवल साहित्यिकरूप में विद्यमान है- नाटकोंमें, जैनग्रंथोंमें तथा बौद्ध पिटकग्रंथोंमें विशेषतः प्राकृतभाषा का व्यवहार हुआ है. ____ वर्तमानमें हमारी भारतीय आर्यशाखानुगत सब भाषाओंके विकासके मूलमें यह ही भाषा है- गुजराती मराठी सिंधी पंजाबी बंगाली वगैरह भाषाओंमें द्विवचनका कोई अलग रूप नहीं है- प्राकृत में भी द्विवचनका कोई अलग रूप
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