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________________ नहीं हैं. भूतकालके तथा भविष्यकालके विविध प्रकार उक्त भाषाओंमें नहीं हैंप्राकृत में भी भूत भविष्यके कोई विविध प्रकार नहीं हैं. उक्त भाषाओंमें निसर्गतः संयुक्तव्यंजन युक्त शब्द अत्यंत कम हैं- जो अभी अधिकाधिक दीख पडते हैं वे संस्कृतके संसर्गसे आये हुए हैं- प्राकृत भाषामें भी संयुक्तव्यंजन युक्त शब्द अत्यंत कम हैं. क्रियापदों के प्रयोगोंमें उक्त भाषाओं में कोई अटपटी व्यवस्था नहीं है-सरल समान व्यवस्था है- प्राकृत भाषामें भी क्रियापदोंके सब प्रयोग एकदम सरल सुगम हैं. नामोंके रूप तथा प्रत्यय उक्त भाषा ओंमें करीब करीब समान होते हैं-प्राकृत भाषामें भी नामोंके रूप तथा प्रत्यय करीब करीब समान-सुगम होते हैं. हमारी वर्तमान उक्त सब भाषाओं के साथ प्राकृतभाषाका तुलनात्मक अन्वेषण व परीक्षण करनेसे उन भाषाओंके साथ प्राकृत भाषाका विशेषतः अनन्तर संबंध स्थापित हो चुका है. अतः उक्त भाषाओंके इतिहासको बराबर समझने के लिए, हमारे पूर्वजों के साहित्य को समझनेके लिए और हमारी संस्कृतिके स्वरूपको समझने के लिए भी प्राकृतभाषाका अभ्यास अनिवार्य है. इसी हेतुसे विनयमंदिरों से लेकर विद्यापीठों तक के अभ्यासक्रममें प्राकृत भाषाका अभ्यासक्रम नियत किया गया है. गहराईसे तुलनात्मक परीक्षण द्वारा भाषाशास्त्रके अन्वेषकोने भी वेदोंकी भाषाके साथ प्राकृतभाषा का घनिष्ठ संबंध सिद्ध कर बताया है इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्राकृतभाषा कितनी प्राचीन है. देखिए:वैदिकरूप प्राकृतरूप क्रियापद १ हनति हनति हणति, हणइ २ शयते सयते, सयए ३ भेदति भेदति-भेदइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001708
Book TitlePaia Lacchinammala
Original Sutra AuthorDhanpal Mahakavi
AuthorBechardas Doshi
PublisherR C H Barad & Co Mumbai
Publication Year1960
Total Pages204
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Dictionary
File Size9 MB
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