________________
वह उन्हें खाने लगे, समझना बही आपका घातक होगा । यह सुनकर परशुराम ने दानशाला खोली और दादों का थाल एक सिंहासन पर रख दिया । इधर युवावस्था को प्राप्त सूभूम भी अपनी माँ से अपने पूर्वजों की कथा सुनकर क्रोधावस्था में हस्तिनापुर की दानशाला में आया । दानशाला में प्रवेश करते ही उसकी दृष्टि दादों पर पड़ी और वे क्षीररूप में परिणत हो गये । सूभूम क्षीर खाने लगा । परशुराम उसे पहचान गया । वह परशु लेकर सूभूम पर टूट पड़ा लेकिन सूभूम की दृष्टि पड़ते ही उसका परशु निस्तेज हो गया । सूभूम ने क्षीर खाकर थाली परशुराम पर फेंका जिससे वह चक्ररत्न बन गया उसका चक्रवर्तित्व प्रकट हुआ । इसके बाद सूभूम ने एक-एक करके सभी क्षत्रियों का बदला लिया ।
उसने २१ बार पृथ्वी को ब्राह्मण रहित किया । चक्ररत्न के बल से भरत क्षेत्र के छहों खण्डों पर विजय पाया । एक बार वह सेनासहित लवण समुद्र से होकर जा रहा था कि चर्मरत्न के अधिष्ठायक देवों के छोड़ने से सब पानी में डूब कर मर गये। ४७. आर्यमहागिरि का गच्छत्याग
आर्य स्थूलिभद्र के दो शिष्य थे.१५ - आर्यमहागिरि और आर्य सुहस्ती । उनमें बड़े शिष्य आर्यमहागिरि विशेष वैराग के कारण संयम में पुरुषार्थ करते हुए अकेले ही रहा करते थे । वे विहार के समय गाँव के बाहर ही रहा करते थे. । वे सुहस्ती के ही निश्राय में विचरण करते थे । एक बार सुहस्तीसूरि पाटलिपुत्र में वसुमति श्रावक के कुटुम्ब को प्रतिबोध दे रहे थे कि आर्य महागिरि भी वहाँ आ पहुँचे । आर्य सुहस्तीसूरि ने उनकी वन्दना की । आर्य महागिरि भिक्षा लिए बिना ही चले गये । सुहस्तीसूरि से आर्य महागिरि की महत्ता जानकर वसूभूति श्रावक ने पूरे नगर को उत्तम भोजन कराया । आर्य महागिरि ने उस आहार को अकल्पनीय जानकर ग्रहण नहीं किया । उपाश्रय में आकर उन्होंने सुहस्तीसूरि को उपालम्भ दिया और उनका गच्छ छोड़कर पृथक् विहार करने लगे । तपसंयम की आराधना करके वे देवलोक गये । ४८. श्रीमेषकुमार की कथा
मगधदेश की राजधानी राजगृही नगरी में राजा श्रेणिक और उनकी पत्नी रानी धारिणी को मेघकुमार नामक एक पुत्र था । युवावस्था को प्राप्त वह ८ कन्याओं से विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा । एक बार भगवान महावीर का उपदेश सुनकर उसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और उसने दीक्षा ले ली । उसका संथारा उपाश्रय
९०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org