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का राजा वासुपूज्य मुनि के पास मुनिदीक्षा लेने जा रहा था । उन दोनों ने अनेक प्रलोभनों से उन्हें पुन: गृहस्थ जीवन में लाने का प्रयत्न किया लेकिन वे असफल रहे। फिर वे जंगल में यमदग्नि नामक तापस के पास गये और चकवा चकवी का रूप बना उसकी दाढ़ी में घोसला बनाकर बैठ गये । चकवा ने मनुष्यवाणी में हिमालय पर्वत पर जाने की बात कही । चकवी ने उसे जाने से रोका और कहा कि आप उसी शर्त पर जा सकते हैं कि यदि आप नहीं आये ते यमदग्नि तापस का पाप आपको लगेगा। इस पर यमदग्नि नाराज होकर अपने पाप का कारण पूछे । उन दोनों ने बताया कि पुत्र के बिना गति नहीं होती है । इस पर तापस धर्मी देव हारकर जैन धर्म स्वीकार किया । उधर यमदग्नि पुत्रोत्पत्ति के लिए शादी करने चल दिए । वे कोष्ठक नगर के जितशत्रु की रेणुका नामक कन्या के साथ शादी किये । प्रथम ऋतुकाल में यमदग्नि एक चर मन्त्रित करके दे रहे थे । रेणुका ने उनसे एक और चर अपनी बहन अनंगसेना के लिए मांगा जिससे एक से ब्राह्मण पुत्र हो और दूसरी से क्षत्रियपुत्र । क्षत्रिय चर का सेवन की हुई रेणुका और ब्राह्मण चरु का सेवन की हुई अनंगसेना ने एक-एक पुत्र को जन्म दिया जिनका नाम क्रमश: राम और कीर्तिवीर्य रखा गया। जवानी में राम अतिसार रोग से पीड़ित हो गया, लेकिन एक विद्याधर की दवा से ठीक हो गया । उसने राम को परशु विद्या सिखाया जिससे उसका नाम परशुराम पड़ा। एक बार उसकी माँ रेणुका ने अनन्तवीर्य के साथ सहवास से एक पुत्र को जन्म दिया। परशुराम ने इस दुश्चरित्र के कारण रेणुका सहित नवजात शिशु का वध कर डाला । इससे क्रुद्ध होकर अनन्तवीर्य ने यमदग्नि के आश्रम को छिन्नभिन्न कर डाला । इस पर परशुराम ने अनन्तवीर्य का सिर काट डाला । पितृहत्या के प्रतिशोधरूप उत्तराधिकारी पुत्र कीर्तिवीर्य ने यमदग्नि की हत्या कर डाली । इस पर परशुराम ने कीर्तिवीर्य की हत्या कर उसके राज्य को अपने कब्जे में ले लिया । कीर्तिवीर्य की गर्भवती पत्नी तारारानी किसी तरह जान बचाकर जंगल में दयावान् तापसों के आश्रम के तलघर में रहने लगी । उसने सूभूम नामक पुत्र को जन्म दिया । उधर परशुराम क्षत्रियों पर नाराज होकर सात बार पृथ्वी को निश्क्षत्रिय बनाया और उनके दाढ़ों को एकत्रिक कर एक बड़े थाल में भर कर रख दिया । एक बार परशुराम घूमते-घूमते उन्हीं तापसों के आश्रम में पहुँचा, उसके परशु से ज्वालाएँ निकलने लगीं। पूछने पर तापसों ने कहा यहाँ कोई क्षत्रिय नहीं है । एक दिन परशुराम के पूछने पर किसी नैमित्तिक ने परशुराम को बताया - जिस पुरुष की दृष्टि पड़ते ही ये दाढ़े क्षीर रूप हो जाय और
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