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में पड़ने वाले चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को चन्द्र समझकर सारा दूध पी गयी । इस प्रकार उसका दोहद पूर्ण हुआ । उसने बालक को जन्म दिया । चाणक्य वहाँ से धातु विद्या सीखने अन्यत्र चल दिया । आठ साल बाद वापस आया और चन्द्रगुप्त नामक उसी बच्चे को लेकर चल दिया । धातुविद्या के प्रयोग से कुछ धन इकट्ठा करके चाणक्य
थोड़ी सेना एकत्रित की और नन्दराजा पर आक्रमण किया लेकिन हार गया । वह चाणक्य को लेकर भाग गया । पीछा करते हुए एक सैनिक को देखकर झट उसने साधु का वेश बनाकर चन्द्रगुप्त को तालाब में छिपा दिया और स्वयं ध्यानस्थ बैठ गया । सैनिक के पूछने पर उसने तालाब के अन्दर इशारा किया । इस पर हथियार रखकर पकड़ने जा रहे सैनिक की उसने पीछे से गरदन उड़ा दी । और चन्द्रगुप्त को लेकर आगे चल दिया । इसी तरह उसने एक और सैनिक को मार डाला । दोपहर को भूखे चन्द्रगुप्त को एक गाँव के बाहर छोड़कर स्वयं भोजन लेने चला । जल्दी के कारण दही भात खाकर आ रहे विप्रदेव के पेट से दही चावल निकाल लिया और लाकर चन्द्रगुप्त को तृस किया ।
वे शाम को किसी गाँव में एक बुढ़िया के यहाँ भिक्षार्थ पहुँचे । बुढ़िया ने अपने बच्चों के लिए थाली में गर्म गर्म राब परोसे थी । एक बच्चे के थाली के बीच में हाथ डालने से उसका हाथ जल गया और वह रोने लगा । उसने चाणक्य की मूर्खता का दृष्टान्त देकर उसको चुप कराया । चाणक्य को इससे बहुत बड़ी सबक मिली । वह चन्द्रगुप्त को लेकर पर्वतराज के पास गया और उससे मैत्री कर आधा राज्य देने का वचन देकर उसकी विशाल सेना के साथ नन्दराजा पर आक्रमण किया और विजयी हुआ १३ । पराजित नन्द राजा ने चन्द्रगुप्त के साथ अपनी पुत्री की शादी कर दी । नन्दराजा जाते-जाते अपने महल में एक विषकन्या को छोड़ गया | चाणक्य अनुमान से उसे दोषदूषित जानकर पर्वतराज के साथ उसका विवाह कर दिया । पर्वतराज का शरीर जहर से व्याप्त हो गया और कुछ दिनों बाद मर गया । इस प्रकार चाणक्य अपना मतलब गांठ कर मित्र को भी ठुकरा दिया ।
४६. परशुराम और सुभूमचक्री
सुधर्मा देवलोक में विश्वानर और धन्वन्तरी नामक क्रमश: जैन और तापस धर्मावलम्बी दो मित्रदेव आपस में धर्मचर्चा और स्वधर्मप्रशंसा किया करते थे । एक वे मृत्यु लोक में श्रेयस् धर्म परीक्षा के लिए आये । उस समय मिथिला नगरी
बार
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