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देख जहर खा लिया और कर्मबन्ध के कारण नरक में गए । इधर कोणिक पिता को मरा देखकर फूट-फूट कर रोने लगा कुछ समय बाद शान्त हुआ । एक बार पत्नी से उत्तेजित होकर कोणिक ने अपने भाईयों से पिता द्वारा दी गयी तीन दिव्य वस्तुओं की मांग की । उसके भाई उन चीजों को लेकर अपने नाना चेतराजा के पास गये। चेत ने सारी वस्तुस्थिति समझकर कोणिक को समझाने का प्रयास किया लेकिन वह न माना और युद्ध के लिए तैयार हो गया'१२ । युद्ध में मरकर वह नरक में गया । १५. चाणक्य की कथा
चणक गाँव में चणी और चणेश्वरी नामक ब्राह्मण दम्पती रहते थे । वे जैन धर्म के अनुयायी थे । उनको एक पुत्र हुआ जिसके जन्मते ही मुँह में सभी दांत थे। अत: उसका नाम चाणक्य रखा था । एक बार एक मुनि से चणी ने उस बालक के बारे में पूछा । मुनि ने कहा दाँत के कारण यह बड़ा राजा होगा । फिर माँ ने राज्यासक्ति के पश्चात् नारकी होने के भय से उसके दाँत घिस डाले । फिर मुनि के आने पर पूछा, मुनि ने कहा अब बड़ा राजमन्त्री बनेगा । युवावस्था में आने पर उसकी शादी हो गयी । एक बार अपने भाई की शादी के मौके पर उसकी पत्नी अर्थाभाव के कारण सादे पोशाक पहनकर अपने मायके गयी वहाँ उसका किसी ने सत्कार नहीं किया । उसने दु:खी मन से घर आकर चाणक्य से सब कह दी । चाणक्य धन कमाने के लिए कुछ दिनों में पाटलिपुत्र पहुँचा और नन्दराजा से धन की याचना की । वह राजा के संमुख भद्रासन पर बैठ गया । दासी ने दूसरे आसन पर बैठने को कहा, चाणक्य ने उस पर अपना कमण्डलु रखने को कहा । दासी ने तीसरा दिखाया उस पर उसने अपना दण्ड रखा उसने चौथे और पाँचवें पर माला और यज्ञोपवीत रख दिया । इस पर दासी ने उसे धूर्त कहकर डाँटा और लात मार दी । इस पर नाराज होकर वह नन्दराजा को राजगद्दी से हटाने का संकल्प करके चल दिया। वह बचपन में मुनि के द्वारा दी गई भविष्यवाणी को याद कर राजा के लिए योग्य पुरुष की खोज में चल दिया । घूमते-घूमते वह नन्दाराजा के मयूरपालक गाँव में पहुँचा और संन्यासी बनकर भिक्षार्थ घूमने लगा । उसी समय मयूरपालक की गर्भवती पत्नी को चन्द्रपान का दोहद उत्पन्न हुआ । चाणक्य ने दोहदपूर्ण कराने का वचन दिया, इस शर्त पर कि होने वाला बच्चा उसे मिलेगा । उसने घास की झोपड़ी में रात को उस महिला को बिठा दिया और ऊपर एक आदमी को छिद्र के पास एक ढक्कन के साथ बिठा दिया । उसने महिला के सामने थाली में दूध रख दिया । थाली
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