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प्रतिबोध देने आना । सम्यक् चारित्राराधन कर पोट्टिला देवलोक में उत्पन्न हुई ।
__अवधिज्ञान से पूर्वजन्मीय स्थान जानकर वह मन्त्री को प्रतिबोध देने आयी लेकिन मन्त्री को मोह के कारण प्रतिबोध उत्पन्न नहीं हुआ । देव ने अपने प्रभाव से मन्त्री के प्रति राजा के मन में घृणा पैदा कर दी। इसे क्षुब्ध होकर मन्त्री आत्महत्या करने चला । लेकिन आत्महत्या के सारे प्रयास देवप्रभाव से असफल रहे । अन्त में पोट्टिला का जीवदेव प्रकट होकर उसे दीक्षा ग्रहण की सलाह दी । दीक्षा ग्रहण कर तेतलीपुत्र घाती कमों का क्षय करके केवली हुआ । समस्त कर्मों का क्षय कर मोक्ष को प्राप्त हुआ । ११. कोगिकराजा की कया
उन दिनों राजगृहनगर में भगवान महावीर का परमभक्त श्रेणिक राजा राज्य करता था । उसकी चिल्लण नाम की रूपवती पटरानी थी । चिल्लण के गर्भ में एक ऐसा जीव आया जिसका श्रेणिक के साथ पूर्वजन्म का वैर था । चिल्लण रानी को तीसरे महीने में अपने पति के कलेजे का मांस खाने का अशुभ दोहद पैदा हुआ । दोहद पूर्ण न होने के कारण कृशगात्रा रानी से राजा के बहुत पूछने पर उसने अपना अशुभ दोहद बता दिया । राजा ने यह बात अपने बुद्धिमान पुत्र अभयकुमार से कही। अभयकुमार ने दूसरे किसी जीव का कलेजा राजा के हृदय पर बांधकर रानी का दोहदपूर्ण किया । चिलण ने नवजात पुत्र को अनिष्टकारक समझकर अशोकवाटिका में लिटा दिया । दासी से जब राजा ने यह बात सुनी तो पुत्रस्नेहवश वे वहाँ से उसे उठा लाए और उसका नाम अशोकचन्द्र रखा । लेकिन एक मुर्गे ने आकर उसकी अंगुली का एक कोना काट खाया था जिससे उसको कोणिक भी कहा जाने लगा। जवान होने पर कोणिक की शादी सुन्दर राजकन्या से कर दी गयी । कोणिक के दो छोटे भाई थे हल्लकुमार और विहल्लकुमार । राजा ने जयदाद का बँटवारा करते समय इन दोनों को क्रमश: बहुमूल्य हार और सेचनक हाथी दिए । कोणिक को इससे पिता के प्रति ईर्ष्या हुई । उसने राजा को लकड़ी के पिंजरे में बन्द कर दिया और स्वयं राजा बन बैठा । कोणिक पत्नी पद्मावती ने एक दिन पुत्ररत्न को जन्म दिया। एक दिन राजा उस बालक को गोद में लेकर भोजन कर रहा था कि बालक ने पेशाब कर दिया । राजा मूत्र-मिश्रित भोजन कर रहा था । राजा ने अपनी माँ से बच्चे के प्रति उमड़ते प्रेम का कारण पूछा । माँ ने कहा इसे भी अधिक प्रेम तेरे पिता को तुझ पर था । यह सुनकर राजा अपने पिता की ओर दौड़ा । राजा ने उसे आता
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