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________________ जाकर घोड़े मर गये फिर पैदल चलकर कोष्ठक नगर में किसी ब्राह्मण के यहाँ भोजन किये । ब्राह्मण ने ब्रह्मदत्त से अपनी पुत्री की शादी कर दी । वे छिपकर सो वर्ष बाद काम्पिल्यपुर पहुँचकर दीर्घराजा को मार डाले और अपना राज्य वापस ले लिया । इसके बाद ब्रह्मदत्त छ: खण्डों पर विजय प्राप्त कर बारहवाँ चक्रवर्ती बना । एक दिन राजसिंहासन पर बैठा-बैठा फूल का गुच्छ देखकर जाति स्मरण ज्ञान हुआ । पूर्वजन्म के भाई चित्र का जीव साधू रूप में उनको प्रतिबोध देने के लिए आया । लेकिन उसको प्रतिबोध नहीं हुआ । जब जिन्दगी के १६ वर्ष बाकी थे तभी किसी ग्वाले ने उसकी एक आँख फोड़ दी । उसने इसे ब्राह्मण की करतूत जानकर सभी ब्राह्मणों की आँख निकलवाना शुरू कर दिया । इस प्रकार अनेक अशुभ कर्मों के कारण सातवें नरक का नारकी बना २०६ ४३. कनककेतु राजा की कथा तेतलीपुर नगर के कनककेतु राजा की पद्मावती नाम की पटरानी थी । राजा का तेतलीपुत्र नामक मन्त्री था । जिसकी पोट्टिला नाम की सुन्दर पत्नी थी । एक बार राजा को पुत्र हुआ । राज्यलिप्सु राजा पुत्र के हाथ कटवा डाला ताकि वह भविष्य में उसका राज्य न ले सके। इस तरह उसने होनेवाले सभी पुत्रों को अपंग बना दिया । बहुत दिनों बाद एक बार फिर पद्मावती ने शुभ स्वप्न के साथ गर्भ धारण किया और संयोग से मन्त्रिपत्नी पोट्टिला भी गर्भ धारण की । रानी ने मन्त्री को बुलाकर होनेवाले बालक की सुरक्षा का भार चुपके से सौंप दिया । पुत्रोत्पन्न हो पर मन्त्री ने उस बालक को चुपके से अपने घर ले आकर उसकी पत्नी को हुई पुत्री को लाकर रानी के पास रख दिया । राजा को सूचित किया गया कि उन्हें पुत्री हुई है । राजपुत्र कनकध्वज धीरे-धीरे मंत्री के यहाँ बड़ा होने लगा । कुछ समय बाद कनककेतु की मृत्यु हो जाने पर सामन्तों को उत्तराधिकारी की चिन्ता हुई । उस समय मन्त्री ने रहस्योद्घाटन कर कनकध्वज को राजगद्दी पर बिठा दिया । कुछ समय बाद मंत्रिपत्नी पोट्टिला अपने अशुभ कर्मों के कारण मन्त्री की अप्रिय बन गयी । उन्हीं दिनों उसके यहाँ भिक्षार्थ आई सुव्रतासाध्वी जी से उसने पति को वश में करने का उपाय पूछा । साध्वी जी ने उसे उपदेश देकर इहलोक और परलोक में सुखकर शुद्धधर्म का आचरण करने को कहा । पोट्टिला साध्वी जी की बात मानकर भागवती दीक्षा अंगीकार की । मन्त्री ने उसे धन्यवाद देते हुए कहा कि यदि देवी हो जाओ तो मुझे Jain Education International ८५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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