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उपदेश सुनकर स्कन्दकुमार को वैराग्य हो गया और माता-पिता की आज्ञा से उसने दीक्षा ग्रहण कर ली । विहार करते-करते वे एक दिन कान्तिपुर पहुँचे । वहाँ उसकी बहन सुनन्दा को उसके प्रति अति स्नेह उमड़ा । लेकिन मुनि को उस पर जरा भी आसक्ति नहीं हुई । यह देखकर राजा को शक हुआ कि सुनन्दा को उसके प्रति राग है । उसने रातोरात कायोत्सर्ग के लिए खड़े मुनि की हत्या करवा दिया । सुबह खून से लथपथ मुँहपत्ती को किसी पक्षी ने लाकर रानी के महल के आंगन में डाल दिया । जिसे देककर रानी किसी मुनि हत्या की शंका से बेहोश हो गयी । होश में आकर अपने भाई का पता लगाया । बाद में मालूम हुआ वही उसका भाई था । वह भाई के लिए बहुत रोई । राजा ने उसका मन बहलाने का बहुत उपाय किया ।
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४२. चुलनी रानी की कथा
काम्पिल्यपुर में ब्रह्म नामक राजा एवं चूलणी रानी को ब्रह्मदत्त नामक पुत्र हुआ । ब्रह्म राजा के चार मित्रनृप थे - कणेरदत्त, कटकदत्त, दीर्घराजा और पुष्पचूल । पाँचों में गाढ़ मैत्री थी । ब्रह्म राजा के मर जाने के बाद चारों मित्रों के निर्णयानुसार दीर्घराजा राजा का कार्यभार संभालने के लिए वहीं रहने लगा । कुछ दिनों बाद वह चूलणी रानी से वैषयिक सम्बन्ध स्थापित कर लिया । जब धनु नामक वृद्ध मन्त्री को इस बात का पता चला तो उसने अपने पुत्र वरधनु को बता दी और वरधनु ने ब्रह्मदत्त को बतायी । ब्रह्मदत्त राजा को अप्रत्यक्ष धमकियाँ देने लगा । दीर्घराजा डरकर रानी से उसके पुत्र को मरवा डालने का प्रस्ताव रखा । रानी ने तो पहले इन्कार किया लेकिन कामपिपासा के कारण स्वीकार कर लिया । उसने लाक्षा का एक महल बनवाया और ब्रह्मदत्त की शादी पुष्पचूल राजा की कन्या से कर दी । धनुमन्त्री परिस्थिति को भाँप गया । उसने वृद्धावस्था के कारण राजा से तीर्थ पर जाने की अनुमति माँगी । राजा शंकित होकर उसे गंगातट पर रहने का आग्रह किया । धनुमन्त्री ने गंगातट से लाक्षागृह तक सुरंग बनवा दिया और पुष्पचूल राजा को सन्देश भेजा कि वह अपनी पुत्री के बदले किसी सुन्दर दासी को भेजे । पुष्पचूल ने वैसा ही किया । ब्रह्मदत्त अपने मित्र वरधनु को साथ लेकर अपने शयनकक्ष में पहुँचा । आधी रात को लाक्षागृह में आग लगा दी गई । ब्रह्मदत घबरा गया । वरधनु से उसे दास देते हुए बैठने की जगह पर लात मारने को कहा । ब्रह्मदत्त के लात मारने पर सुरंग का द्वार खुल गया । वे दोनों दासी को वहीं सोया हुआ छोड़कर सुरंग से होकर भागे । सुरंग से निकल कर दो घोड़ों पर सवार होकर भाग गये । कुछ दूर
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