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वह एक बार महाकाय हाथी का रूप बनाकर उसे घायल किया फिर भी असफल रहा फिर विषधर सर्प बनकर उसे हँसा " | लेकिन कामदेव विचलित नहीं हुआ । अन्त में हारकर वह अपने असली रूप में आकर उससे क्षमा माँगा और धन्यवाद देकर अपने लोक को गया । प्रात: काल होने पर कायोत्सर्ग और पौषध पारित कर वह महावीर के दर्शनार्थ गया । भगवान ने पूछा क्या यह सत्य है कि रात को किसी देव ने तुम्हें तीन उपसर्ग दिये थे । कामदेव ने सब सच सच बता दिया । कामदेव २० वर्ष तक श्रावक व्रत का पालन कर मरणोपरान्त देव बना । वहाँ से आयु पूर्ण कर उसका जीव महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध मुक्त होगा ।
३८. द्रमक का दृष्टान्त
राजगृह नगर में एक बार कोई उत्सव था जिसे मनाने के लिए सभी लोग वैभारगिरि पर जमा हुए थे । उसी समय उस नगर में आया हुआ द्रमक नामक भिक्षुक आहार के लिए घूम रहा था, परन्तु उसे कहीं भी हार नहीं मिला । इससे नाराज होकर उसने वैभारगिरि से एक शिला उन लोगों पर गिरायी । शिला को गिरते देख सब लोग इधर-उधर भागने लगे और संयोगवश वह मुनि ही शिला से दबकर मर गया । वह सातवीं नरक भूमि को प्राप्त हुआ ।
३९. दृढ़प्रहारी मुनि की कथा
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माकन्दी नगरी में समुद्रदत्त और समुद्रदत्ता ब्राह्मण दम्पती को एक पुत्र हुआ। वह ज्यों-ज्यों बड़ा होता था वह अधिकाधिक शैतान होता जाता था । युवावस्था में आते-आते उसके अत्याचार से ऊबकर लोगों ने राजा से उनकी शिकायत की । राजा ने उसे अपमानपूर्वक नगरी से निकाल दिया । वहाँ से वह भिल्लपति के पास पहुँचा । भिल्लपति ने उसके पराक्रम को देखकर अपना उत्तराधिकारी बना दिया और उसका नाम दृढ़प्रहारी रखा । एक दिन दृदप्रहारी बहुत से डाकुओं को साथ लेकर कुशस्थल नगर लूटने गया था । वहाँ का देवशर्मा नामक गरीब ब्राह्मण उस दिन कठिनाई से खीर बना कर नदी स्नान करने गया था । एक डाकू उनके घर में घुसा और खीर का बर्तन लेकर चल दिया । यह देखकर ब्राह्मण के बच्चे अपने पिता के पास गये । ब्राह्मण दौड़ता आया और लोहे की छड़ी लेकर उनका पीछा कीया । थोड़ी दूर पर वह डाकू मिल गया । दोनों मे लड़ाई होने लगी । दृढ़प्रहारी वहाँ आकर विप्र की हत्या कर दिया । ब्राह्मण के पीछे आयी गाय और उनकी गर्भवती पत्नी को भी उसने
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